बिहार की राजनीति में 2025 के विधानसभा चुनावों को लेकर हलचल जोरों पर है। एनडीए और महागठबंधन – दोनों ही खेमे अपनी-अपनी रणनीतियां गढ़ने में व्यस्त हैं, लेकिन अंदरूनी खींचतान और घटक दलों के तेवर इन गठबंधनों के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। जहां एक ओर एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी अपने बयानों से गठबंधन नेतृत्व को असहज कर रहे हैं।
चिराग पासवान: नीतीश के खिलाफ आक्रामक रुख
एनडीए का हिस्सा होने के बावजूद चिराग पासवान के बयान और रुख मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। चिराग ने विधानसभा की सभी 243 सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है, जो स्पष्ट संकेत देता है कि वे नीतीश कुमार के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करते। 2020 के चुनावों में भी चिराग ने ‘बिहारी फर्स्ट, बिहारी प्राइड’ के नारे के साथ नीतीश के खिलाफ अलग राह पकड़ी थी और जदयू को नुकसान पहुँचाया था।
अब एक बार फिर चिराग पासवान उसी आक्रामक मुद्रा में नजर आ रहे हैं। हालांकि वे अभी भी एनडीए का हिस्सा हैं और केंद्र में मंत्री पद पर बने हुए हैं, लेकिन उनके हालिया बयानों और सीटों को लेकर खुले तेवर से भाजपा भी असमंजस में नजर आ रही है। यह स्थिति आगामी चुनावों में एनडीए के लिए सीट बंटवारे और समन्वय में मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
महागठबंधन में मुकेश सहनी की अलग चाल
उधर, महागठबंधन में भी सब कुछ सहज नहीं है। वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी, जो कभी एनडीए के साथ थे, अब महागठबंधन में शामिल हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक शैली अभी भी स्वतंत्र और अलग-थलग ही दिख रही है। वे बार-बार ऐसे बयान दे रहे हैं जो राजद और कांग्रेस के नेतृत्व को असहज कर रहे हैं। सहनी ने हाल ही में कहा कि उनकी पार्टी सत्ता में भागीदारी चाहती है और सिर्फ समर्थन की भूमिका में नहीं रह सकती।
इसके साथ ही वे अति पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक को लेकर भी महागठबंधन में अपनी उपयोगिता का प्रदर्शन करना चाह रहे हैं। उनका दावा है कि 2025 का चुनाव अति पिछड़ों की भूमिका को निर्णायक बनाएगा और वीआईपी इसमें अहम भूमिका निभाएगी।
गठबंधन की मजबूरी बनाम व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा
इन घटनाक्रमों से यह स्पष्ट होता है कि दोनों ही प्रमुख गठबंधनों में नेता अपने-अपने राजनीतिक वजूद को लेकर ज्यादा मुखर हो गए हैं। जहां चिराग पासवान भाजपा को नीतीश के खिलाफ दबाव में लाना चाहते हैं, वहीं मुकेश सहनी राजद को यह दिखाना चाह रहे हैं कि वीआईपी भी कोई छोटी ताकत नहीं है।

