बिना मतदाता के मिले ही हो रहे फॉर्म पर हस्ताक्षर, वोटर लिस्ट सत्यापन की प्रक्रिया पर उठे सवाल
बिहार में इन दिनों मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का कार्य चल रहा है। चुनाव आयोग के निर्देश पर बीएलओ (बूथ लेवल अधिकारी) घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क कर फॉर्म 6, 7, 8 और 001 जमा कर रहे हैं, ताकि मतदाता सूची को अद्यतन किया जा सके। आयोग के अनुसार अब तक राज्य में 80.11 प्रतिशत फॉर्म जमा हो चुके हैं।
लेकिन इसी बीच ‘अमर उजाला’ के एक स्टिंग में सामने आई एक चौंकाने वाली सच्चाई ने पूरी वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन प्रक्रिया को सवालों के घेरे में ला दिया है। यह मामला पटना के एक पॉश इलाके का है, जहां बीएलओ बिना मतदाता से संपर्क किए ही फॉर्म पर हस्ताक्षर करवा रहे हैं — या यूं कहें कि खुद ही हस्ताक्षर कर रहे हैं।
क्या है मामला?
‘अमर उजाला’ की पड़ताल के मुताबिक, पटना के पॉश इलाके में एक बीएलओ को मतदाता सूची सत्यापन करते हुए पकड़ा गया, जो मतदाता से बिना मिले ही फॉर्म पर हस्ताक्षर करा चुका था। यानी मतदाता के नाम से फॉर्म भरकर उसकी सहमति के बिना ही दस्तावेजों में "सत्यापन" कर दिया गया।
यह गंभीर लापरवाही न केवल चुनाव आयोग की पारदर्शी प्रक्रिया की साख पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि कहीं कुछ अधिकारी सरकारी आंकड़ों की प्राप्ति के दबाव में गलत तरीके अपना रहे हैं।
आयोग का दावा बनाम ज़मीनी हकीकत
भारत निर्वाचन आयोग का दावा है कि बिहार में मतदाता पुनरीक्षण कार्य तेजी से और पारदर्शी तरीके से किया जा रहा है, लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया है कि कुछ स्थानों पर प्रक्रिया महज औपचारिकता बन कर रह गई है।
यह जरूरी नहीं कि हर बीएलओ ऐसा कर रहा हो, और यह भी जरूरी नहीं कि यह घटना केवल एक जगह की हो। लेकिन यह उदाहरण पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए पर्याप्त है।
क्या कहते हैं जानकार?
चुनावी मामलों के जानकारों का कहना है कि मतदाता सूची की शुद्धता लोकतंत्र की नींव होती है। अगर सत्यापन में ही लापरवाही हो रही है, तो इससे फर्जी वोटिंग, दोहरी प्रविष्टियों और असामयिक निष्कासन जैसे गंभीर खतरे उत्पन्न हो सकते हैं।
आयोग और प्रशासन पर बढ़ा दबाव
इस खुलासे के बाद अब चुनाव आयोग और राज्य निर्वाचन अधिकारियों पर यह दबाव बढ़ गया है कि वे बीएलओ के काम की गहन निगरानी करें, और जहां-जहां इस तरह की लापरवाही सामने आए, वहां कड़ी कार्रवाई की जाए।

