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प्रियांक खरगे के आरएसएस पर प्रतिबंध वाले बयान से सियासत गरमाई, बिहार में उठी तीखी प्रतिक्रियाएं

प्रियांक खरगे के आरएसएस पर प्रतिबंध वाले बयान से सियासत गरमाई, बिहार में उठी तीखी प्रतिक्रियाएं

कर्नाटक के मंत्री और कांग्रेस नेता प्रियांक खरगे के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर प्रतिबंध लगाने संबंधी बयान ने देशभर की सियासत में हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि यदि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनती है, तो वह आरएसएस जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगा देगी। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ गया है। खासतौर पर बिहार में इस मुद्दे को लेकर जबरदस्त सियासी घमासान छिड़ गया है।

प्रियांक खरगे ने यह बयान कर्नाटक में एक जनसभा के दौरान दिया, जहां उन्होंने आरएसएस को "विचारों का ज़हर फैलाने वाला संगठन" बताया और कहा कि यह समाज को बांटने का काम करता है। उन्होंने कहा, "जिस तरह पीएफआई पर बैन लगाया गया, वैसे ही हम आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगाएंगे, अगर केंद्र में हमारी सरकार बनी।"

इस बयान के बाद बिहार में भाजपा और जदयू के नेताओं ने कांग्रेस और खरगे पर तीखा हमला बोला है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने इसे "हिंदू विरोधी मानसिकता" का उदाहरण बताया और कहा कि कांग्रेस पार्टी हमेशा से सांप्रदायिक सौहार्द के खिलाफ काम करती रही है। उन्होंने कहा, "आरएसएस देशभक्ति और सेवा का प्रतीक है। उस पर प्रतिबंध लगाने की बात करना संविधान और लोकतंत्र दोनों का अपमान है।"

वहीं, जदयू के कुछ नेताओं ने भी कांग्रेस से दूरी बनाते हुए कहा कि इस तरह के बयान से विपक्षी एकता को नुकसान पहुंच सकता है। राजद की ओर से फिलहाल कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन अंदरखाने में यह चर्चा है कि ऐसे बयानों से विपक्षी गठबंधन को लोकसभा चुनाव से पहले मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि खरगे के इस बयान से कांग्रेस को लाभ कम और नुकसान अधिक हो सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां आरएसएस की गहरी पकड़ है। यह बयान न सिर्फ भाजपा को मुद्दा देगा, बल्कि विपक्षी खेमे में भी मतभेद की खाई को गहरा कर सकता है।

कांग्रेस की ओर से अब तक इस पर कोई आधिकारिक सफाई नहीं दी गई है, लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह प्रियांक खरगे का निजी विचार है, न कि पार्टी की आधिकारिक लाइन।

फिलहाल, इस बयान ने बिहार की सियासत में गर्मी ला दी है। एनडीए इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश में जुट गया है, जबकि विपक्षी खेमे में बैचेनी साफ नजर आ रही है। अब देखना होगा कि कांग्रेस इस विवाद को किस तरह संभालती है और विपक्षी दलों के साथ अपने संबंधों को कैसे बनाए रखती है।

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