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बिहार में SIR पर सियासी घमासान: सड़क से सदन तक मचा बवाल, चिराग पासवान बोले – “इसका राजनीतिकरण ज्यादा हो रहा है”

बिहार में SIR पर सियासी घमासान: सड़क से सदन तक मचा बवाल, चिराग पासवान बोले – “इसका राजनीतिकरण ज्यादा हो रहा है”

बिहार में इन दिनों SIR (सामाजिक-आर्थिक जनगणना रिपोर्ट) को लेकर सियासत चरम पर है। सड़क से लेकर विधानसभा तक इस मुद्दे पर तीखी बहस और आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। बुधवार को बिहार विधानसभा में SIR को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच जमकर नोकझोंक हुई। विपक्ष जहां रिपोर्ट की वैधता और निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है, वहीं सरकार इसे सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम बता रही है।

इस बीच, केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने इस मसले पर बड़ा बयान देते हुए कहा है कि,

“SIR एक गंभीर सामाजिक मुद्दा है, लेकिन दुर्भाग्यवश इसे जरूरत से ज्यादा राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।”

चिराग पासवान ने क्या कहा?

पटना में मीडिया से बात करते हुए चिराग ने कहा,

“बिहार को आज बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था जैसे बुनियादी मुद्दों पर गंभीर चर्चा की ज़रूरत है। लेकिन SIR को जिस तरह राजनीतिक हथियार बना दिया गया है, वह जनता के हितों से ध्यान भटकाने जैसा है।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर इस रिपोर्ट के जरिए सरकार जातिगत समीकरण साधना चाहती है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

विधानसभा में हंगामा

बिहार विधानसभा में भी बुधवार को विपक्षी दलों ने SIR को लेकर सरकार को कठघरे में खड़ा किया। आरजेडी विधायकों ने रिपोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार इसे चुनावी एजेंडा बनाने की कोशिश कर रही है। जवाब में जेडीयू और राजग विधायकों ने विपक्ष पर जातीय राजनीति फैलाने का आरोप लगाया।

विधानसभा अध्यक्ष को बीच-बचाव कर कार्यवाही को आगे बढ़ाना पड़ा। विपक्ष ने मांग की कि रिपोर्ट पर विस्तृत बहस हो और इसमें दर्शाए गए आंकड़ों की सत्यता को स्वतंत्र एजेंसी से सत्यापित करवाया जाए।

जनता में मिलेजुले भाव

SIR को लेकर आम लोगों में भी राय बंटी हुई है। कुछ इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक जरूरी कदम मान रहे हैं, जबकि कई लोग इसे “वोट बैंक की राजनीति” करार दे रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस रिपोर्ट का उपयोग यदि सरकारी योजनाओं की सही दिशा तय करने के लिए किया जाए तो यह फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यदि इसका इस्तेमाल सिर्फ जातीय ध्रुवीकरण के लिए होता है तो यह सामाजिक ताने-बाने के लिए घातक हो सकता है।

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