
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले दलित वोट बैंक को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। एनडीए और महागठबंधन दोनों दलित समुदाय को लुभाने के लिए पूरी ताकत झोंक चुके हैं, लेकिन सबसे बड़ा दिलचस्प मोड़ एनडीए के भीतर ही खींचतान को लेकर देखने को मिल रहा है।
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान के बीच जुबानी जंग अब सार्वजनिक मंचों तक पहुंच गई है। इस तकरार की शुरुआत उस वक्त हुई जब चिराग पासवान के सांसद और बहनोई अरुण भारती ने मांझी पर टिप्पणी की।
“चट्टे-बट्टे क्या बोलते हैं…”
पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अरुण भारती के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:
"चिराग के चट्टे-बट्टे क्या बोलते हैं, मैं उस पर ध्यान नहीं देता।"
मांझी के इस बयान को अपमानजनक मानते हुए अरुण भारती ने पलटवार करते हुए कहा:
"हां, हम चिराग के चट्टे-बट्टे हैं, मगर बड़े वाले हैं। हमारे नेता मांझी की तरह किसी की कृपा से मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे।"
चिराग ने दी नरम प्रतिक्रिया
हालांकि चिराग पासवान ने इस पूरे विवाद पर संयमित प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:
"मांझी जी मुझसे बहुत बड़े हैं, वह जो कहें वही सही।"
लेकिन जानकार मानते हैं कि चिराग की यह "नरमी" दरअसल राजनीतिक चतुराई का हिस्सा है, ताकि अंदरूनी कलह खुलकर सामने न आए।
मांझी का आरोप – चिराग में समझदारी की कमी
इस विवाद के बीच मांझी ने एक और तीखा बयान देते हुए कहा कि चिराग पासवान में राजनीतिक समझदारी की कमी है।
"वह सिर्फ कैमरे और सोशल मीडिया के नेता हैं, जमीनी सच्चाई नहीं समझते।"
दलित वोटों की अहमियत
बिहार की राजनीति में दलित मतदाताओं का प्रभाव बेहद महत्वपूर्ण है। राज्य में दलित आबादी करीब 20 प्रतिशत है, जिसमें रविदास समाज और पासवान समाज की संख्या सबसे अधिक है।
इन्हीं वोटों पर पकड़ मजबूत करने के लिए मांझी और चिराग दोनों एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं। मांझी खुद को महादलितों का असली प्रतिनिधि बताते हैं, जबकि चिराग रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ाने की बात कहकर दलितों को साधने की कोशिश में हैं।
महागठबंधन भी सक्रिय
उधर महागठबंधन भी दलित वोटों पर नजर गड़ाए बैठा है। राजद, कांग्रेस और वाम दल दलितों के बीच पैठ बनाने के लिए नीतीश सरकार की कथित विफलताओं को मुद्दा बना रहे हैं।