
देश की सर्वोच्च अदालत में एक 16 साल 6 महीने की नाबालिग लड़की ने अपनी जबरन कराई गई शादी को रद्द करने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की है। याचिका में लड़की ने कहा है कि उसकी शादी 32 वर्षीय एक व्यक्ति से उसकी मर्जी के खिलाफ कराई गई, जबकि वह अभी अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी।
शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप
नाबालिग ने कोर्ट को बताया कि ससुराल में उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। उसने अपनी याचिका में यह भी बताया कि यह शादी पूरी तरह बिना उसकी सहमति के और अवैध रूप से कराई गई, और अब वह इससे न्याय की उम्मीद में सुप्रीम कोर्ट की शरण में आई है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत मामला
यह पूरा मामला बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 (Prohibition of Child Marriage Act, 2006) के दायरे में आता है। इस अधिनियम के तहत 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की की शादी गैरकानूनी मानी जाती है। कानून के मुताबिक, बाल विवाह शून्य (voidable) करार दिया जा सकता है, और इसके लिए पीड़ित को अदालत में अपील करने का अधिकार है।
क्या कहता है कानून?
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18 साल से कम उम्र की लड़की और 21 साल से कम उम्र के लड़के की शादी कानूनन मान्य नहीं है।
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ऐसी शादी न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और रद्द कराई जा सकती है।
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यदि लड़की की मर्जी के खिलाफ शादी कराई गई है, तो यह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन भी माना जाता है।
सामाजिक चिंता का विषय
यह मामला केवल एक व्यक्ति विशेष का नहीं, बल्कि उन हजारों लड़कियों की स्थिति को उजागर करता है जिन्हें आज भी बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं का शिकार होना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका बाल विवाह के खिलाफ कानूनी और सामाजिक चेतना बढ़ाने का माध्यम भी बन सकती है।