बिहार के स्कूलों में एमडीएम योजना बनी लूट का अड्डा, सीतामढ़ी में फिर उजागर हुआ घोटाला
बिहार के सरकारी स्कूलों में मध्यान्ह भोजन योजना (MDM) बच्चों को पौष्टिक आहार देने के उद्देश्य से लागू की गई थी, लेकिन कुछ विद्यालयों में यह योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती जा रही है। बच्चों को मिलने वाले निवाले पर भी अब भ्रष्टाचार की काली छाया पड़ गई है। ताजा मामला सीतामढ़ी जिले के बैरगनिया प्रखंड मुख्यालय स्थित एक स्कूल से सामने आया है, जहां मध्यान्ह भोजन योजना में बड़े पैमाने पर घोटाले का खुलासा हुआ है।
जानकारी के मुताबिक, बैरगनिया प्रखंड के इस स्कूल में प्रधान शिक्षक द्वारा एमडीएम की राशि और चावल की हेराफेरी की जा रही थी। योजना के तहत प्रतिदिन छात्रों को गर्म, ताजा और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जाना चाहिए, लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। कई बार छात्रों को अधपका भोजन दिया गया या कभी-कभी खाना बनाया ही नहीं गया। इसके बावजूद सरकारी रिकॉर्ड में खाना बनने और वितरित किए जाने का ब्यौरा दर्ज होता रहा।
स्थानीय लोगों की शिकायत और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की निगरानी के बाद इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ। स्कूल में आपूर्ति किए जाने वाले चावल की मात्रा और हकीकत में वितरित की गई सामग्री में बड़ा अंतर पाया गया। इसके अलावा, एमडीएम योजना के लिए आवंटित राशि का भी ग़लत इस्तेमाल किया गया है। जांच में यह भी सामने आया कि कई दिनों तक भोजन बना ही नहीं, लेकिन कागजों पर सब कुछ सही दर्शाया गया।
यह कोई पहला मामला नहीं है। बिहार के विभिन्न जिलों से पहले भी एमडीएम योजना में गड़बड़ी की खबरें आती रही हैं। कई बार कार्रवाई भी हुई है – दोषी प्रधान शिक्षकों को निलंबित किया गया, एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन भ्रष्टाचार की यह श्रृंखला थमने का नाम नहीं ले रही।
बात सिर्फ बच्चों के भोजन की नहीं, बल्कि उनके स्वास्थ्य और अधिकार की भी है। मध्यान्ह भोजन योजना का उद्देश्य गरीब और पिछड़े तबकों के बच्चों को कुपोषण से बचाना और उन्हें स्कूल में बनाए रखना था, लेकिन जब जिम्मेदार शिक्षक ही इस योजना का गला घोंटने लगें, तो यह शिक्षा व्यवस्था और समाज दोनों के लिए बेहद चिंता की बात है।
स्थानीय प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO) ने कहा है कि जांच के बाद दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और स्कूल की एमडीएम व्यवस्था की दोबारा समीक्षा की जाएगी।
इस पूरे मामले ने फिर एक बार यह सवाल खड़ा कर दिया है कि बच्चों की भलाई के लिए चलाई जा रही योजनाओं को पारदर्शिता और सख्त निगरानी के अभाव में कैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाया जा रहा है। अब देखना यह है कि प्रशासन इस बार कितनी गंभीरता से कार्रवाई करता है और क्या भविष्य में ऐसी लूट पर कोई स्थायी विराम लग पाएगा।

