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गोपाल खेमका की हत्या और मतदाता सूची निरीक्षण पर मायावती का हमला, बीजेपी-जेडीयू सरकार को ठहराया जिम्मेदार

गोपाल खेमका की हत्या और मतदाता सूची निरीक्षण पर मायावती का हमला, बीजेपी-जेडीयू सरकार को ठहराया जिम्मेदार

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने बिहार में कारोबारी गोपाल खेमका की हत्या और निर्वाचन आयोग द्वारा जारी मतदाता सूची के सघन पुनरीक्षण अभियान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने दोनों मामलों में बिहार की सत्तारूढ़ बीजेपी-जेडीयू गठबंधन सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कानून-व्यवस्था और लोकतंत्र की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

🔫 हत्या पर उठाए सवाल

मायावती ने रविवार रात खगौल में हुई एक और हत्या की पृष्ठभूमि में गोपाल खेमका हत्याकांड को लेकर सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि पटना जैसे हाई-सिक्योरिटी जोन में लगातार हो रही हत्याएं इस बात का प्रमाण हैं कि राज्य में कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं बची है

“जब राजधानी में कारोबारी सुरक्षित नहीं हैं, तो आम आदमी की सुरक्षा की कल्पना भी नहीं की जा सकती,” – मायावती।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण दे रही है, जिससे उनका मनोबल बढ़ता जा रहा है और कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है।

🗳️ मतदाता सूची निरीक्षण पर जताई आपत्ति

मायावती ने निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में विशेष सघन मतदाता सूची पुनरीक्षण के आदेश को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया केवल बिहार तक सीमित रखना संदेह पैदा करता है और इससे राजनीतिक उद्देश्यों की बू आती है

“मतदाता सूची की शुद्धता जरूरी है, लेकिन इसे पूरे देश में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए, ताकि निष्पक्षता बनी रहे,” – मायावती।

उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार की चयनात्मक प्रक्रिया से लोकतंत्र की नींव कमजोर होती है और यह चुनावी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में लाती है।

⚖️ विपक्ष को मिला समर्थन

मायावती के इन बयानों को बिहार में विपक्षी दलों—विशेषकर राजद और कांग्रेस—का अप्रत्यक्ष समर्थन माना जा रहा है, जो पहले ही इस मुद्दे पर नीतीश सरकार और चुनाव आयोग की नीतियों को सवालों के घेरे में ले चुके हैं। आरजेडी सांसद मनोज झा तो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुके हैं।

📢 बसपा का बढ़ता हस्तक्षेप

हालांकि बसपा की बिहार में बहुत बड़ी राजनीतिक उपस्थिति नहीं है, लेकिन मायावती के इस बयान को आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर एक सियासी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मायावती समाज के दबे-कुचले वर्गों को एक बार फिर सक्रिय करने की कोशिश कर रही हैं।

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