
भारतीय संस्कृति में रथ यात्रा का विशेष महत्व है, विशेष रूप से भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा जो हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होती है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की रथ यात्रा के रूप में प्रसिद्ध है। रथ यात्रा का समापन दशमी तिथि को होता है और यह यात्रा पूरी दुनिया में श्रद्धालुओं द्वारा धूमधाम से मनाई जाती है।
रथ यात्रा की शुरुआत: सहस्त्रधारा स्नान
रथ यात्रा से पहले की तैयारी भी विशेष होती है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है सहस्त्रधारा स्नान। यह स्नान रथ यात्रा की शुरुआत का संकेत देता है और इसे भगवान जगन्नाथ के भक्तों द्वारा बड़े श्रद्धा भाव से किया जाता है। इस दिन श्रद्धालु सहस्त्रधारा या सहस्त्र जलधारा स्नान करते हैं, जो एक पवित्र आयोजन माना जाता है। इसका उद्देश्य शरीर को शुद्ध करना और पुण्य अर्जित करना होता है, ताकि रथ यात्रा में भाग लेने के लिए शुद्धता और पवित्रता बनी रहे।
रथ यात्रा की परंपरा और महत्ता
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पुरी (ओडिशा) से शुरू होती है, जहां उनके तीन रथों को भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए सजाया जाता है। रथों को विशेष रूप से सजाया जाता है और इन रथों में भगवान जगन्नाथ सहित उनके दोनों भाई-बहन सवार होते हैं। रथ यात्रा के दौरान, भक्त रथों को खींचते हैं और भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। यह यात्रा केवल पुरी तक सीमित नहीं रहती, बल्कि देश और विदेश में भी कई स्थानों पर रथ यात्रा आयोजित की जाती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा को हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र आयोजन माना जाता है। इसे भक्तों की समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है। रथ यात्रा न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक भी है। रथ यात्रा के दौरान सभी धर्मों और जातियों के लोग एक साथ आते हैं और भगवान जगन्नाथ की आराधना करते हैं, जिससे समानता और भाईचारे का संदेश फैलता है।