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बयानबाज़ी फिर बनी जीतन राम मांझी की मुश्किल? केंद्रीय मंत्री पद पर मंडराने लगा खतरा

बयानबाज़ी फिर बनी जीतन राम मांझी की मुश्किल? केंद्रीय मंत्री पद पर मंडराने लगा खतरा

केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के प्रमुख जीतन राम मांझी एक बार फिर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। हाल के दिनों में दिए गए कुछ विवादास्पद और तीखे बयानों के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि कहीं उनका केंद्रीय मंत्री पद खतरे में तो नहीं पड़ गया है। मांझी के बयान ऐसे समय सामने आए हैं, जब एनडीए सरकार सहयोगी दलों के बीच संतुलन साधने की कोशिश में है।

यह पहला मौका नहीं है जब जीतन राम मांझी की बयानबाज़ी ने उन्हें मुश्किल में डाला हो। बिहार की राजनीति में लोग आज भी 2014 के उस दौर को याद करते हैं, जब नीतीश कुमार ने बड़े भरोसे और उम्मीदों के साथ उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद छोड़ा और अपने कई वरिष्ठ व करीबी नेताओं को दरकिनार कर मांझी को राज्य की कमान सौंप दी।

नीतीश कुमार की यह उम्मीद थी कि मांझी एक संतुलित, संयमित और संगठन के अनुरूप नेतृत्व देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही महीनों के भीतर मांझी अपने बयानों और फैसलों को लेकर विवादों में घिरते चले गए। उनकी बयानबाज़ी पार्टी लाइन से अलग मानी जाने लगी और धीरे-धीरे यह स्थिति नीतीश कुमार के लिए असहज होती चली गई।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मांझी का बड़बोलापन उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गया। उन्होंने एक के बाद एक ऐसे बयान दिए, जिन्हें न तो पार्टी नेतृत्व ने स्वीकार किया और न ही सहयोगी दलों ने। हालात ऐसे बने कि नीतीश कुमार के लिए उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बनाए रखना मुश्किल हो गया और अंततः उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी।

अब लगभग उसी तरह की स्थिति एक बार फिर बनती दिख रही है। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी मांझी के बयान कई बार सरकार और गठबंधन की आधिकारिक सोच से अलग नजर आए हैं। हालिया बयानों को लेकर विपक्ष को भी सरकार पर हमला बोलने का मौका मिल गया है, जिससे एनडीए नेतृत्व असहज महसूस कर रहा है।

हालांकि, मांझी समर्थकों का कहना है कि वे बेबाक नेता हैं और अपनी बात खुलकर रखने से नहीं डरते। उनके अनुसार, मांझी दलित और वंचित समाज की आवाज उठाते हैं, जो कई बार सत्ताधारी व्यवस्था को असहज कर देती है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि राजनीति में पद पर बने रहने के लिए संयम और मर्यादा उतनी ही जरूरी होती है जितनी साफगोई।

फिलहाल, यह साफ नहीं है कि मांझी के हालिया बयानों का उनके केंद्रीय मंत्री पद पर क्या असर पड़ेगा। लेकिन बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले जानकार मानते हैं कि अगर बयानबाज़ी पर लगाम नहीं लगी, तो इतिहास खुद को दोहरा सकता है।

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