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जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सहायक प्रोफेसर डॉ. रकीब आलम ने पिता पर लगाए गंभीर आरोप, NHRC ने DGP बिहार से मांगी रिपोर्ट

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सहायक प्रोफेसर डॉ. रकीब आलम ने पिता पर लगाए गंभीर आरोप, NHRC ने DGP बिहार से मांगी रिपोर्ट

जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सहायक प्रोफेसर डॉ. रकीब आलम ने अपने ही पिता मोहम्मद आरिफ के खिलाफ गंभीर आरोप लगाकर एक सनसनीखेज मामला उजागर किया है। उन्होंने अपनी मां रुकैया खातून के साथ ट्रिपल तलाक, हलाला, शारीरिक-मानसिक शोषण, संपत्ति हड़पने और जानलेवा हमलों जैसे आरोपों को लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), विधि आयोग और महिला आयोग को पत्र भेजकर न्याय और सुरक्षा की गुहार लगाई है।

मां के लिए न्याय की लड़ाई

डॉ. रकीब आलम का कहना है कि उनके पिता ने उनकी मां के साथ न सिर्फ तीन तलाक देकर रिश्ता तोड़ा, बल्कि बाद में हलाला की अमानवीय प्रक्रिया से भी गुजरने के लिए मजबूर किया। यही नहीं, उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी मां को वर्षों तक शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, और परिवार की संपत्ति को हड़पने की भी कोशिश की गई

जानलेवा हमले का आरोप

डॉ. आलम ने दावा किया कि उन पर और उनकी मां पर कई बार जानलेवा हमला भी किया गया, जिससे वे अब खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो किसी अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता।

NHRC ने लिया संज्ञान

मामला सामने आने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस पर त्वरित संज्ञान लेते हुए बिहार के पुलिस महानिदेशक (DGP) से इस पूरे मामले पर रिपोर्ट तलब की है। आयोग ने कहा है कि यदि शिकायत में लगाए गए आरोप सही पाए गए, तो मानवाधिकार उल्लंघन के तहत कार्रवाई की जाएगी।

डॉ. रकीब ने कहा — ये व्यक्तिगत नहीं, सामाजिक लड़ाई

पत्र में डॉ. रकीब ने लिखा है,

“यह केवल मेरी मां की लड़ाई नहीं है, यह देश की उन तमाम महिलाओं की लड़ाई है जिन्हें धार्मिक और सामाजिक जकड़ों में बांध कर इंसानियत से दूर किया जा रहा है। हम संविधान और कानून में विश्वास रखते हैं और न्याय की उम्मीद करते हैं।”

प्रशासन और समाज से अपील

डॉ. रकीब आलम ने बिहार सरकार, जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों से निष्पक्ष जांच और त्वरित कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि पीड़ित महिलाओं के लिए मजबूत कानूनी और सामाजिक सुरक्षा तंत्र विकसित किया जाए ताकि भविष्य में किसी को ऐसे हालात से न गुजरना पड़े।

अब आगे क्या?

अब जब यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार आयोग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं के संज्ञान में आ चुका है, बिहार पुलिस और संबंधित एजेंसियों पर इसकी गंभीर जांच और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी है। यह प्रकरण केवल एक परिवार का विवाद नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार और महिला अधिकारों से जुड़ा व्यापक मुद्दा बनता जा रहा है।

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