सैकड़ों लोगों के पास दोहरी नागरिकता, चुनाव आयोग के फैसले के बाद सीतामढ़ी में छिड़ी बहस

देशभर में मतदाता सूची को स्वच्छ और निष्पक्ष बनाने के लिए चुनाव आयोग ने बड़ा कदम उठाया है। अब नए और पुराने मतदाताओं को अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए जन्म स्थान का प्रमाण और स्वघोषित प्रमाण पत्र देना होगा। यह नया नियम बिहार से शुरू हो रहा है और धीरे-धीरे पूरे देश में लागू किया जाएगा। चुनाव आयोग का यह फैसला अवैध प्रवासियों और दोहरी नागरिकता वाले लोगों की विशेष रूप से पहचान करने और उन्हें मतदाता सूची से बाहर करने के उद्देश्य से लिया गया है। हालांकि, इस फैसले पर आम लोगों और विशेषज्ञों की मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है।
चुनाव आयोग का यह नया फैसला एक तरफ मतदाता सूची की शुद्धता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने का प्रयास है। वहीं, दूसरी तरफ इसके क्रियान्वयन की प्रक्रिया को लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं। खासकर सीमावर्ती जिलों में फर्जी नागरिकता और दस्तावेजों के खेल को देखते हुए जनता चाहती है कि यह नियम सिर्फ कागजों तक सीमित न रहे बल्कि सख्ती से लागू हो, ताकि असली मतदाता को उसका अधिकार मिले और फर्जी मतदाता सामने न आएं, यह भी जरूरी है कि ग्रामीण और बिना दस्तावेज वाले नागरिकों को मतदाता बनाने की प्रक्रिया आसान और पारदर्शी बने, ताकि कोई भी भारतीय नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित न रहे।
सरकार को लेना चाहिए फैसला
सीतामढ़ी के वरिष्ठ वकील रितेश रमण सिंह कहते हैं कि यह नियम पूरे भारत के मतदाताओं के लिए समान रूप से लागू होना चाहिए। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग नए मतदाताओं को जोड़ने की बात तो करता है लेकिन उनके लिए जटिल प्रक्रिया बना रहा है। ऐसा लगता है कि आयोग उनमें बाधा डालने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि अब गांव-देहात के अनपढ़ लोगों या जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं, उनके लिए मतदाता बनना मुश्किल हो जाएगा। इसके लिए कई पहचान पत्र बनाने की भी बात हुई। चुनाव आयोग को सरकार से बात कर सही फैसला लेना चाहिए