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खगड़िया में कांग्रेस कार्यालय पर भाजपा का झंडा फहराने से सियासी तूफान, जांच की मांग

खगड़िया में कांग्रेस कार्यालय पर भाजपा का झंडा फहराने से सियासी तूफान, जांच की मांग

बिहार के खगड़िया जिले के परबत्ता स्थित कांग्रेस कार्यालय पर भाजपा का झंडा फहराए जाने की घटना ने जिले की राजनीति में तेज सियासी हलचल पैदा कर दी है। यह मामला ऐसे समय सामने आया है, जब हाल ही में कांग्रेस ने अपना 141वां स्थापना दिवस मनाया था। घटना के बाद कांग्रेस नेताओं में भारी नाराजगी देखी जा रही है और इसे पार्टी की गरिमा पर सीधा हमला बताया जा रहा है।

कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि यह कोई सामान्य घटना नहीं, बल्कि पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पार्टी की छवि धूमिल करना और कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ना है। कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव डॉ. चंदन यादव ने इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए कहा कि लोकतंत्र में इस तरह की घटनाएं बेहद गंभीर हैं और दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए।

डॉ. चंदन यादव ने कहा कि कांग्रेस कार्यालय एक राजनीतिक दल का प्रतीक है और वहां किसी दूसरी पार्टी का झंडा फहराना राजनीतिक मर्यादाओं का उल्लंघन है। उन्होंने आशंका जताई कि यह घटना जानबूझकर कांग्रेस स्थापना दिवस के बाद की गई, ताकि पार्टी की उपलब्धियों और संदेश को कमजोर किया जा सके।

स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने भी घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि यह केवल एक झंडा फहराने का मामला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाएं और जिम्मेदार लोगों की पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाए।

वहीं, इस पूरे मामले पर पुलिस का कहना है कि उन्हें अब तक इस संबंध में कोई औपचारिक शिकायत या सूचना प्राप्त नहीं हुई है। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, शिकायत मिलने के बाद ही मामले की जांच प्रक्रिया शुरू की जा सकेगी। हालांकि, घटना के सार्वजनिक होने के बाद पुलिस पर भी सवाल उठने लगे हैं कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील इलाके में इस तरह की घटना कैसे हो गई।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना आगामी राजनीतिक गतिविधियों और चुनावी माहौल को देखते हुए राजनीतिक तनाव बढ़ाने वाली साबित हो सकती है। बिहार की राजनीति में पहले से ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है और ऐसे मामलों से आपसी टकराव और तेज हो सकता है।

फिलहाल, कांग्रेस कार्यकर्ता प्रशासन से जल्द कार्रवाई की मांग कर रहे हैं और चेतावनी दे रहे हैं कि यदि मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो वे आंदोलन का रास्ता भी अपना सकते हैं। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की सीमाएं आखिर कहां तक होनी चाहिए।

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