
अब गांवों के किसान पारंपरिक खेती से आगे बढ़ते हुए सालभर साग-सब्जी की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रहे हैं। बदलते मौसम और बाजार की मांग को समझते हुए कई किसान अब मल्टी-क्रॉपिंग (बहुफसली खेती) को अपनाकर लगातार अच्छी आमदनी अर्जित कर रहे हैं।
हर मौसम में उपज, हर महीने आमदनी
पिछले कुछ वर्षों में किसानों ने धान और गेहूं के साथ-साथ हरी सब्जियों जैसे पालक, बथुआ, सरसों, मेथी, टमाटर, भिंडी, लौकी, करेला, तोरी और शिमला मिर्च जैसी फसलों को अपनाया है। ये फसलें छोटे अंतराल में तैयार हो जाती हैं, जिससे हर 15-20 दिन में बाजार भेजने योग्य उपज मिलती रहती है।
एक स्थानीय किसान राजेश प्रसाद ने बताया,
"पहले साल में एक या दो फसलें होती थीं। अब सालभर खेत खाली नहीं रहता। हर महीने कुछ न कुछ बिक जाता है। इस बार पालक और टमाटर से अच्छी कमाई हुई है।"
कम लागत, ज्यादा मुनाफा
सब्जी और साग की खेती में कम समय और सीमित संसाधनों की जरूरत होती है। खेतों की मेड़ पर भी सब्जियां लगाई जा सकती हैं। कई किसान जैविक विधि से खेती कर रहे हैं, जिससे उत्पादों की मांग और दाम दोनों अधिक हैं।
महिलाओं की भूमिका भी अहम
साग-सब्जी की खेती में ग्रामीण महिलाएं भी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। वे न केवल बुवाई और देखरेख करती हैं, बल्कि स्थानीय बाजारों में खुद जाकर बेचती भी हैं, जिससे उनके आत्मविश्वास और आय में इजाफा हुआ है।
सरकारी योजनाएं भी मिल रही हैं मदद
कृषि विभाग और राष्ट्रीय आजीविका मिशन जैसे योजनाएं किसानों को बीज, प्रशिक्षण और सिंचाई संसाधनों में मदद दे रही हैं। साथ ही स्थानीय स्तर पर एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन) भी किसानों को संगठित तरीके से बाजार उपलब्ध कराने में सहायक हो रहे हैं।