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सरकारी आवास पर अनिश्चितकाल तक नहीं रह सकते पूर्व पदाधिकारी, पूर्व विधायक की याचिका खारिज

सरकारी आवास पर अनिश्चितकाल तक नहीं रह सकते पूर्व पदाधिकारी, पूर्व विधायक की याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी आवास के अनधिकृत कब्जे पर एक बड़ा और सख्त फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना ही बड़ा पदाधिकारी क्यों न रहा हो, अनिश्चितकाल तक सरकारी आवास पर कब्जा नहीं कर सकता। कोर्ट का यह निर्देश उस समय आया जब एक मामले की सुनवाई के दौरान बिहार के एक पूर्व विधायक की याचिका को खारिज कर दिया गया।

दरअसल, मामला एक पूर्व विधायक से जुड़ा है, जिन्होंने विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद भी सरकारी बंगले में दो साल तक कब्जा जमाए रखा। इसके चलते राज्य सरकार ने उनके ऊपर 21 लाख रुपये का दंडात्मक किराया लगा दिया था। पूर्व विधायक ने इस जुर्माने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका को "बिना किसी औचित्य के" मानने से इनकार कर दिया और उसे खारिज कर दिया।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली हो, यह नहीं सोच सकता कि वह अनिश्चित काल तक जनता की संपत्ति का व्यक्तिगत उपयोग कर सकता है।" कोर्ट ने यह भी दोहराया कि सरकारी आवास सिर्फ सेवा में रहते हुए ही वैध रूप से उपयोग किए जा सकते हैं।

यह फैसला ऐसे समय में आया है जब भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ से उनके आधिकारिक सीजेआई आवास को खाली कराने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। इस प्रसंग को जोड़कर देखा जाए तो यह सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा संकेत है कि अब सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जाएगा।

यह निर्णय उन लोगों के लिए भी एक कड़ा संदेश है जो पद से हटने के बाद भी सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने की मानसिकता रखते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि ऐसा चलन चलता रहा तो इससे न सिर्फ संसाधनों की बर्बादी होगी, बल्कि यह जनता के पैसे और अधिकारों का उल्लंघन भी होगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला प्रशासनिक अनुशासन और जवाबदेही के सिद्धांतों को सुदृढ़ करेगा। इससे आगे अन्य राज्यों में भी ऐसे मामलों पर कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, जहां पूर्व मंत्री, विधायक या अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर सरकारी बंगले पर कब्जा जमाए बैठे हैं।

इस निर्णय के बाद सरकारी आवासों को लेकर नियमों के पालन और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक सशक्त कदम के रूप में इसे देखा जा रहा है।

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