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बिहार पुलिस की किरकिरी के बाद डीजीपी का स्पष्टीकरण: मीडिया के प्रचार-प्रसार पर लगेगा नियंत्रण

बिहार पुलिस की किरकिरी के बाद डीजीपी का स्पष्टीकरण: मीडिया के प्रचार-प्रसार पर लगेगा नियंत्रण

बिहार में पिछले कुछ समय से हुए चंदन मिश्रा हत्याकांड और गोपाल खेमका हत्याकांड जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों ने बिहार पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। राज्य भर में बढ़ते अपराध और पुलिस की नाकामी को लेकर बिहार पुलिस की किरकिरी हो रही है। इसको लेकर राज्य के पुलिस महकमे में हलचल मची हुई है।

22 जुलाई को बिहार के डीजीपी (डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) ने मीडिया के प्रचार-प्रसार पर नियंत्रण लगाने के लिए एक फरमान जारी किया था, जिसके तहत पुलिस अधिकारियों को मीडिया से जुड़े मामलों पर संयमित और विवेकपूर्ण बयान देने का निर्देश दिया गया था।

क्या था डीजीपी का फरमान?

डीजीपी ने अपने फरमान में स्पष्ट तौर पर कहा था कि पुलिस अधिकारियों को मीडिया से जुड़ी जानकारी साझा करते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए और किसी भी मामले में पुलिस की छवि को धूमिल करने वाली बयानबाजी से बचने की सलाह दी थी। इस निर्देश का मुख्य उद्देश्य पुलिस की कार्यशैली को लेकर अफवाहों और गैरजिम्मेदार मीडिया कवरेज को रोकना था।

मामले के बढ़ने पर डीजीपी का स्पष्टीकरण:

मीडिया में इस फरमान की आलोचना के बाद बुधवार को डीजीपी ने स्पष्टीकरण जारी किया। उन्होंने कहा कि यह फरमान सिर्फ और सिर्फ पुलिस अधिकारियों के कार्यों के प्रति मीडिया में बेहतर संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से था। डीजीपी ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य समान रूप से मीडिया की स्वतंत्रता को दबाना नहीं था, बल्कि यह सुनिश्चित करना था कि पुलिस के मामलों पर सही और सटीक जानकारी ही बाहर आए, जिससे गैरजरूरी विवादों और अफवाहों से बचा जा सके।

डीजीपी के मुताबिक, "हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि मीडिया के साथ पुलिस का संबंध पारदर्शी और जिम्मेदार हो।"

क्या असर हुआ है?

  • मीडिया और पुलिस के बीच संवाद को लेकर तनाव बढ़ गया है।

  • पत्रकारों और रिपोर्टर्स ने इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमला माना है और कहा है कि सुनियोजित तरीके से मीडिया की आवाज को दबाया जा रहा है।

  • पुलिस विभाग में भी कुछ अधिकारियों के बीच इस फरमान को लेकर असहमति जताई जा रही है।

अब तक के घटनाक्रम:

बिहार में हुए चंदन मिश्रा हत्याकांड, जिसमें एक निजी अस्पताल के स्टाफ के साथ साथ एक प्रमुख कारोबारी की हत्या की गई थी, और गोपाल खेमका हत्याकांड, जिसमे एक बडे़ व्यापारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, दोनों मामलों ने पुलिस की जांच प्रक्रिया पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया था। इन घटनाओं ने मीडिया में चर्चाओं को जन्म दिया, जिसमें कई बार पुलिस की निष्क्रियता और कर्तव्यहीनता की आलोचना की गई।

पुलिस के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे?

  • बिहार पुलिस ने यह भी कहा कि वे मीडिया कवरेज को समझदारी से नियंत्रित करने के लिए एक प्रणाली विकसित करेंगे, ताकि झूठी सूचनाओं और हंगामे से बचा जा सके।

  • वहीं पुलिस विभाग अब पत्रकारों के लिए एक विशेष मीडिया गाइडलाइन तैयार करने पर विचार कर रहा है, जिससे सही जानकारी समय पर प्रदान की जा सके और अव्यवस्था से बचा जा सके।

जनता की नजर:

इस विवाद के बाद बिहार की जनता और मीडिया इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या पुलिस की कार्यशैली को लेकर उत्पन्न विवादों से बचने के लिए मीडिया को एक ऐसा मार्गदर्शन देने की आवश्यकता है, जो न्यायपूर्ण और पारदर्शी हो।

यह घटनाक्रम बिहार में पुलिस-मीडिया के रिश्तों पर नई बहस को जन्म दे सकता है, जिस पर आने वाले दिनों में और भी चर्चा हो सकती है।

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