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सड़कों पर डिलीवरी राइडर्स की दौड़, डिजिटल घड़ी में सामान 10 मिनट के अंदर पहुंचाने वालों के साथ हो रहा खेल

सड़कों पर डिलीवरी राइडर्स की दौड़, डिजिटल घड़ी में सामान 10 मिनट के अंदर पहुंचाने वालों के साथ हो रहा खेल

शहर की सड़कों पर मोटरसाइकिलों की धीमी, निरंतर गूंज अब केवल आवाज नहीं, बल्कि हजारों डिलीवरी राइडर्स की जिंदगी का प्रतीक बन गई है। यह गूंज आराम या सुविधा का शोर नहीं है, बल्कि उन राइडर्स की तनावपूर्ण मेहनत और दबाव की कहानी कहती है, जो डिजिटल घड़ी के खिलाफ दौड़ रहे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि ये डिजिटल घड़ी केवल समय दिखाने का साधन नहीं है, बल्कि यह तय करती है कि राइडर की कमाई, सुरक्षा और सम्मान क्या होगा। कंपनियां इसे "फास्ट सिस्टम" के नाम से प्रमोट करती हैं, लेकिन इसके पीछे का सच कुछ और है।

आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने हाल ही में राज्यसभा में इस सिस्टम का जिक्र करते हुए इसे “ऑर्गनाइजेशनल टॉर्चर” बताया। सांसद के अनुसार, यह प्रणाली राइडर्स को लगातार प्रेशर, अलार्म और निगरानी के तहत रखती है। राइडर्स को हर डिलीवरी में तेज गति बनाए रखनी होती है और समय सीमा के भीतर कार्य पूरा करना होता है।

राइडर्स का कहना है कि इस सिस्टम में मानवता की कोई जगह नहीं है। वे लगातार तनाव और थकान के बीच काम कर रहे हैं। देर रात, तेज बारिश या गर्मी के बावजूद उन्हें समय सीमा का पालन करना अनिवार्य है। नहीं तो उनकी रेटिंग गिर जाती है, जिससे भविष्य की कमाई और कार्यक्षेत्र प्रभावित होता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के डिजिटल प्लेटफॉर्म आधारित कामगार मॉडल में सुरक्षा और स्वास्थ्य की अनदेखी की जा रही है। लगातार दौड़ते रहने के कारण कई बार सड़क हादसे और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी सामने आती हैं।

सांसद राघव चड्ढा ने संसद में कहा कि कंपनियां अपने सिस्टम को पारदर्शी नहीं रखती हैं और यह मानवाधिकारों और श्रमिकों के सम्मान के खिलाफ है। उन्होंने सरकार से अपील की कि ऐसे प्लेटफॉर्म पर काम करने वाले राइडर्स की सुरक्षा, समय सीमा और स्वास्थ्य संबंधी नियमों को लागू किया जाए।

पटना में डिलीवरी राइडर्स की यह गूंज यह याद दिलाती है कि डिजिटल युग में तकनीक का उपयोग यदि मानव और श्रमिक हितों के खिलाफ किया जाए तो यह केवल “सिस्टम” नहीं बल्कि दबाव और उत्पीड़न का माध्यम बन सकता है।

स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ रही है। श्रमिक संघ और नागरिक समाज भी राइडर्स के अधिकारों और सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म और इंसान के बीच संतुलन और न्यायसंगत नियम आवश्यक हैं, ताकि राइडर्स की मेहनत उनका सम्मान और सुरक्षा दोनों सुनिश्चित कर सके।

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