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दक्षिण बिहार में तटबंधों की टूट-फूट से बाढ़ का खतरा, अभियंताओं की लापरवाही उजागर

दक्षिण बिहार में तटबंधों की टूट-फूट से बाढ़ का खतरा, अभियंताओं की लापरवाही उजागर

दक्षिण बिहार के कई जिलों में नदियों पर बने तटबंधों के टूटने से बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। इन तटबंधों की स्थिति बिगड़ने के पीछे जल संसाधन विभाग के कुछ अभियंताओं की लापरवाही सामने आई है। विभागीय सूत्रों के अनुसार, समय रहते मरम्मत और निगरानी नहीं की गई, जिसकी वजह से कई स्थानों पर तटबंधों में दरारें और टूट-फूट देखी गई है।

खतरे की घंटी बनती लापरवाही

दक्षिण बिहार के गया, नवादा, और औरंगाबाद जैसे जिलों से आई रिपोर्ट के मुताबिक, नदियों के बढ़ते जलस्तर के बीच तटबंधों में दरारें पड़ने लगी हैं। स्थानीय ग्रामीणों ने पहले ही संबंधित अधिकारियों को इन कमजोर संरचनाओं के बारे में सतर्क किया था, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब जब बारिश तेज हो चुकी है, तो बचाव कार्य शुरू किया गया है, लेकिन तब तक कई जगहों पर पानी का रिसाव और कटाव शुरू हो चुका है।

मरम्मत कार्य शुरू, लेकिन सवाल बरकरार

जल संसाधन विभाग के अनुसार, मरम्मत कार्य युद्धस्तर पर जारी है। मशीनें, बालू से भरी बोरियां और मजदूर तैनात किए गए हैं ताकि पानी को गांवों की ओर बढ़ने से रोका जा सके। विभाग का कहना है कि जहां-जहां तटबंध कमजोर पाए गए हैं, वहां तुरंत दुरुस्ती का कार्य किया जा रहा है।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि तटबंधों की सालभर निगरानी और समय पर मेंटेनेंस होना जरूरी था, जो इस बार पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। इसका खामियाजा अब ग्रामीण जनता को भुगतना पड़ रहा है, जिनकी फसलें और घर पानी के खतरे की जद में आ सकते हैं।

ग्रामीणों में गुस्सा

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि विभाग हर साल मानसून से पहले तटबंधों की जांच और मजबूती का दावा करता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कई गांवों में तटबंध के टूटने से भय का माहौल बन गया है, और लोग रात भर जागकर संभावित जलप्रवाह से सुरक्षा के इंतजाम करने को मजबूर हैं।

प्रशासनिक जवाबदेही की मांग

इस घटना ने प्रशासन की आपदा प्रबंधन तैयारियों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। सामाजिक संगठनों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने दोषी अभियंताओं के खिलाफ कार्रवाई और तटबंध निर्माण की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।

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