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पूस की ठंड, आसमान से टपकती ओस: पटना के IGIMS–PMCH में खुले आसमान के नीचे कंपकंपाते मरीज और तीमारदार

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एक ओर बिहार सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर राजधानी पटना के दो बड़े सरकारी अस्पताल—IGIMS और PMCH—की जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोलती नजर आ रही है। पूस की कड़ाके की ठंड में यहां इलाज के लिए पहुंचे मरीज और उनके तीमारदार खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं। ऊपर से आसमान से टपकती ओस और नीचे ठंडी जमीन—हालात किसी भी संवेदनशील प्रशासन के लिए शर्मनाक कहे जा सकते हैं।

IGIMS और PMCH परिसर में रात होते ही सैकड़ों मरीजों के परिजन फर्श पर चादर बिछाकर सोते दिख जाते हैं। कई लोग बिना कंबल के ठंड से कांपते नजर आते हैं। अस्पताल परिसर में न तो पर्याप्त शेड की व्यवस्था है और न ही ठंड से बचाव के लिए अलाव, रैन बसेरा या हीटर जैसी कोई सुविधा।

मरीजों के परिजनों का कहना है कि इलाज के नाम पर पहले ही आर्थिक और मानसिक बोझ झेल रहे हैं, ऊपर से यह ठंड उनकी सहनशक्ति की परीक्षा ले रही है। एक तीमारदार ने बताया, “रात भर ओस गिरती रहती है, कपड़े भीग जाते हैं। बच्चे ठंड से रोते रहते हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है।”

सबसे चिंताजनक स्थिति बच्चों, बुजुर्गों और गंभीर मरीजों के साथ आए परिजनों की है। कई लोगों ने बताया कि उन्होंने अस्पताल प्रशासन से व्यवस्था की मांग की, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की ठंड में खुले में रहना निमोनिया, सर्दी-जुकाम और अन्य संक्रमणों का खतरा बढ़ा देता है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़िमी है कि जब मरीज अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं, तो उनके साथ आए परिजनों की बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है।

स्थानीय सामाजिक संगठनों ने भी इस स्थिति पर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि हर साल ठंड का मौसम आता है, लेकिन प्रशासन की तैयारी शून्य रहती है। सिर्फ कागजी योजनाएं बनती हैं, जमीन पर उनका कोई असर नहीं दिखता।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजधानी के सबसे बड़े अस्पतालों की यह हालत है, तो जिला और ग्रामीण अस्पतालों की स्थिति क्या होगी? करोड़ों रुपये के बजट और बड़े-बड़े दावों के बीच मरीजों और उनके परिजनों की यह बदहाली सिस्टम की संवेदनहीनता को उजागर करती है।

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