क्या पिता की राजनीतिक छाया से निकलकर बिहार की राजनीति में नया अध्याय लिखने की तैयारी है चिराग पासवान?

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के पुत्र, अब अपने राजनीतिक जीवन में एक अहम मोड़ पर खड़े हैं। जहां एक ओर वे अपने पिता की विरासत को संभालने वाले योग्य उत्तराधिकारी माने जाते हैं, वहीं दूसरी ओर वे अपनी स्वतंत्र पहचान और नई शैली के साथ बिहार की राजनीति में एक नई दिशा देने की कोशिश कर रहे हैं।
पिता-पुत्र की राजनीति में फर्क
रामविलास पासवान बिहार के प्रमुख दलित नेता रहे हैं, जिन्हें गठबंधन राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता था। वे छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रहे और समय-समय पर दलों का बदलते रहकर सत्ता के समीप बने रहे। उन्होंने 1983 में दलित सेना की स्थापना की और मंडल आयोग की सिफारिशों का खुलकर समर्थन किया। पासवान परिवार को राजनीति में स्थापित करने में उनका बड़ा योगदान था। इसके विपरीत, चिराग की राजनीति की शैली अधिक आधुनिक, आक्रामक और युवा-केंद्रित है। 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' अभियान, सोशल मीडिया पर सक्रियता और आशीर्वाद यात्रा जैसे कदम चिराग को एक नया राजनीतिक चेहरा बनाते हैं। उनका बॉलीवुड अनुभव भी उनकी छवि को और रंगीन बनाता है, जो पिता की पारंपरिक जमीनी राजनीति से काफी अलग है।
राजनीतिक दायरे का विस्तार और नई रणनीति
रामविलास पासवान का राजनीतिक आधार मुख्यतः पासवान समुदाय और दलित वर्ग तक सीमित था, लेकिन चिराग ने युवाओं, गैर-पासवान दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों को जोड़ने की कोशिश की है। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से दूरी की बात को भी खुले रूप में स्वीकारा और सामाजिक न्याय की नई परिभाषा गढ़ने का प्रयास किया। 2024 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी (रामविलास) की सफलता, जिसमें पार्टी ने बिहार में पांचों सीटें जीतीं, चिराग की स्वतंत्र नेतृत्व क्षमता को दर्शाती है। विशेष रूप से हाजीपुर सीट पर उनकी 1.7 लाख वोटों से जीत ने उन्हें एक निर्णायक नेता के रूप में स्थापित किया है।
बिहार विधानसभा चुनाव: बड़ा सियासी दांव
2020 में जेडीयू के खिलाफ अकेले चुनाव लड़कर चिराग ने नीतीश कुमार की पार्टी को भारी नुकसान पहुंचाया। अब 2025 में वे खुद को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार मानते हैं। बिहार में फिलहाल कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में हो, और चिराग इसे एक अवसर के रूप में देख रहे हैं। एनडीए के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने और बीजेपी के समर्थन से सीएम बनने का उनका सपना अब दूर की कौड़ी नहीं लग रहा।
सामान्य सीट से चुनाव: सोच में बदलाव की मिसाल
एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव के तहत चिराग अब बिहार विधानसभा चुनाव किसी सामान्य (जनरल) सीट से लड़ सकते हैं, जबकि उनके पिता हमेशा आरक्षित सीट से चुनाव लड़ते थे। यह कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि यह उनकी महत्वाकांक्षा और व्यापक नेतृत्व की इच्छा को दर्शाता है। सामान्य सीट से लड़ना उन्हें अन्य समुदायों में समर्थन और मुख्यमंत्री पद की वैधता दोनों प्रदान कर सकता है।
निष्कर्ष
चिराग पासवान अपनी राजनीति को केवल अपने पिता की विरासत तक सीमित नहीं रखना चाहते। वे बिहार की राजनीति में एक व्यापक, समावेशी और आधुनिक नेता के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी रणनीति, सोच और नेतृत्व शैली यह संकेत देती है कि वे केवल ‘रामविलास पासवान के बेटे’ के रूप में नहीं, बल्कि ‘बिहार के भावी नेता’ के रूप में पहचाने जाना चाहते हैं।