112 अत्यंत पिछड़ी जातियों को साधने में जुटी भाजपा, मंगल पांडेय को सौंपी गई अहम जिम्मेदारी

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी चुनावी रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए अत्यंत पिछड़ी जातियों (एपीसी) पर फोकस बढ़ा दिया है। राज्य की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाली इन जातियों को साधने के लिए पार्टी ने स्वास्थ्य मंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है।
भाजपा की निगाहें एपीसी वोट बैंक पर
बिहार में 112 अत्यंत पिछड़ी जातियों की आबादी करीब 35 प्रतिशत है, जो चुनावी नतीजों में बड़ा फर्क ला सकती है। अब तक इन जातियों का रुझान विभिन्न दलों के बीच बंटा रहा है, लेकिन भाजपा की कोशिश है कि इस बार वह उन्हें एकजुट कर अपने पक्ष में मतदान कराए।
मंगल पांडेय को सौंपी गई अहम भूमिका
पार्टी ने मंगल पांडेय को इस अभियान की कमान सौंपकर स्पष्ट संकेत दिया है कि वह एपीसी को लेकर किसी तरह की चूक नहीं करना चाहती। संगठन में लंबे अनुभव और जातीय समीकरणों की गहरी समझ रखने वाले मंगल पांडेय नीति और प्रचार दोनों मोर्चों पर सक्रिय हैं। बताया जा रहा है कि वे जिलावार बैठकों, सामाजिक प्रतिनिधियों से संवाद, और कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देने वाले कैंपेन को गति दे रहे हैं।
रणनीति में ये बिंदु प्रमुख
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जातिवार सम्मेलन: पार्टी अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए अलग-अलग "सम्मेलन" और "संवाद कार्यक्रम" आयोजित कर रही है।
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सरकारी योजनाओं का प्रचार: उज्ज्वला योजना, पीएम आवास योजना, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के लाभार्थियों को जोड़कर भाजपा का पक्ष मजबूत किया जा रहा है।
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स्थानीय नेतृत्व को सशक्त करना: एपीसी वर्ग से आने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को पद और पहचान देकर संगठनात्मक मजबूती लाई जा रही है।
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विपक्ष को घेरने की रणनीति: आरजेडी और कांग्रेस पर एपीसी की अनदेखी का आरोप लगाकर भाजपा इस वर्ग में असंतोष पैदा करने की कोशिश कर रही है।
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की यह रणनीति सोशल इंजीनियरिंग का नया मॉडल है। अब तक अगड़ी जातियों और अति पिछड़े वर्गों के बीच संतुलन साधने वाली भाजपा अब अत्यंत पिछड़ी जातियों को प्राथमिकता पर रखकर सीट दर सीट समीकरण बनाने में जुटी है।