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बिहार की 'नूर शब्बा' बनीं महिलाओं की उम्मीद की किरण, 13 वर्षों से दिला रही हैं रोज़गार

बिहार की 'नूर शब्बा' बनीं महिलाओं की उम्मीद की किरण, 13 वर्षों से दिला रही हैं रोज़गार

बिहार के भोजपुर जिले की नूर शब्बा उर्फ़ नीमा आज राज्यभर में महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल बन चुकी हैं। फुलवारी शरीफ की रहने वाली नूर शब्बा पिछले 13 सालों से महिलाओं के रोजगार और आत्मनिर्भरता के लिए लगातार काम कर रही हैं। उन्होंने न केवल सामाजिक बंदिशों को तोड़ा, बल्कि लगभग 1000 महिलाओं को ठोस रोजगार दिलाकर उनके जीवन की दिशा भी बदल दी।

नूर शब्बा का संघर्ष आसान नहीं रहा। जब उन्होंने यह राह चुनी, तब न तो संसाधन थे, न ही कोई विशेष सहयोग। लेकिन उनके हौसले बुलंद थे। उन्होंने गांव-गांव जाकर महिलाओं को जागरूक किया, उन्हें आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी और सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, ब्यूटी पार्लर, फूड प्रोसेसिंग जैसे कई क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिलवाया।

आज जिन महिलाओं को समाज कभी ‘कमजोर’ समझता था, वे अपने परिवार की आर्थिक रीढ़ बन चुकी हैं। कोई बुटीक चला रही है, कोई हस्तनिर्मित वस्तुएं बेच रही है, तो कोई ऑनलाइन कारोबार कर रही है। इन सभी के पीछे प्रेरणा बनी हैं नूर शब्बा।

नूर शब्बा अब फुलवारी शरीफ से अपने मायके चकिया गांव लौट आई हैं और वहीं एक मकान बनाकर स्थायी रूप से रह रही हैं। अब वह अपने गांव की महिलाओं को सशक्त बनाने में जुट गई हैं। उनका सपना है कि चकिया को वे बिहार के महिला आत्मनिर्भरता का मॉडल गांव बनाएं।

नूर शब्बा बताती हैं –
"मैंने खुद संघर्ष किया है, इसलिए महिलाओं का दर्द समझती हूं। मेरा मानना है कि अगर एक महिला आत्मनिर्भर हो जाए, तो पूरा परिवार मजबूत हो जाता है।"

उनकी इस मुहिम को स्थानीय प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं का भी समर्थन मिलने लगा है। कई संगठनों ने उन्हें सम्मानित भी किया है और उनके कार्यों को बिहार में महिला सशक्तिकरण के मॉडल के तौर पर प्रस्तुत किया है।

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