
बिहार सरकार ने सोमवार को राज्य नागरिक परिषद के गठन की घोषणा की है। सरकार का दावा है कि यह परिषद आम नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने और नीति-निर्माण में जनसरोकारों को शामिल करने की दिशा में एक अहम कदम है। लेकिन इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी हैं।
कई लोगों ने इस कदम को "सिर्फ सरकारी पैसा बर्बाद करने वाला" बताया है। ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर लोग लिख रहे हैं कि इससे सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ पड़ेगा और परिषद के सदस्य अब "सरकारी सुरक्षा" की भी मांग करेंगे। एक यूजर ने लिखा— "ऐसे मजाक की उम्मीद नहीं थी, जनता की गाढ़ी कमाई यूं बर्बाद नहीं होनी चाहिए।"
हालांकि, सरकारी सूत्रों के मुताबिक राज्य नागरिक परिषद का उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज़ को नीति निर्माण तक पहुंचाना है। इसमें बुद्धिजीवी, समाजसेवी, पूर्व नौकरशाह और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि परिषद की संरचना, शक्तियां और व्यावहारिक उपयोगिता को लेकर अभी स्पष्टता नहीं है, जिससे लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
सरकार की ओर से फिलहाल सोशल मीडिया पर उठे सवालों को लेकर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।