Bihar Elections: BJP-नीतीश के 29 साल के रिश्ते की कहानी, कभी साथ तो कभी हुए अलग, चुनावों पर इसका कैसा रहा असर

बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। विपक्षी गठबंधन की ओर से जहां सीट बंटवारे को लेकर बैठकें शुरू हो गई हैं, वहीं सत्तारूढ़ एनडीए भी विभिन्न क्षेत्रों में टिकट देने को लेकर चर्चा में है। खबरों के मुताबिक जेडीयू और बीजेपी बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कर रही है, वहीं कुछ सीटें सहयोगी दलों को भी दी जाएंगी। 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने बीजेपी से ज्यादा विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। नतीजों में बीजेपी ने 75 और जेडीयू ने 43 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
बीजेपी-जेडीयू के बीच बड़े भाई की भूमिका को लेकर टकराव क्यों है? पहली बार दोनों पार्टियां एक साथ कैसे आईं? बीजेपी-जेडीयू ने कब-कब एक साथ चुनाव लड़ा और उनका प्रदर्शन कैसा रहा? इसके अलावा जब ये पार्टियां एक साथ चुनाव नहीं लड़ीं, तब उनका प्रदर्शन कैसा रहा? आइए जानते हैं...
क्या बीजेपी अभी भी अपना मुख्यमंत्री बनाने का इंतजार कर रही है?
1952 में जब बिहार में पहली बार चुनाव हुए थे, तब बीजेपी की पूर्ववर्ती पार्टी भारतीय जनसंघ एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। 1962 में जनसंघ ने पहली बार बिहार में अपना खाता खोला और तीन सीटें जीतीं। 1967 में जनसंघ 26 सीटों के साथ कांग्रेस और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
बीजेपी के समर्थन से लालू पहली बार मुख्यमंत्री बने
1980 तक जनता पार्टी का विभाजन हो गया और भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई। 1980 के चुनाव में बीजेपी ने 21 सीटें जीतीं। 1985 में बीजेपी बिहार में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल ने 324 सीटों में से 122 सीटें जीतीं। कांग्रेस 71 और बीजेपी 39 सीटें जीतने में कामयाब रही। बीजेपी के समर्थन से जनता दल ने सरकार बनाई। लालू प्रसाद यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने। 1995 में बीजेपी ने 41 सीटें जीतीं। इस बार जनता दल ने 167 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। इस चुनाव में नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस की समता पार्टी ने किस्मत आजमाई थी। हालांकि, उन्हें सिर्फ 7 सीटें ही मिलीं।
बीजेपी और नीतीश कैसे साथ आए?
1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को हराकर 161 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में नीतीश कुमार की समता पार्टी को 8 सीटें मिलीं। इनमें से छह सीटें बिहार से जीती थीं। समता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को समर्थन दिया था। यह सरकार सिर्फ 13 दिन चली, लेकिन इसके बाद भी नीतीश और बीजेपी के बीच गठबंधन जारी रहा।
नवंबर 1997 में कांग्रेस द्वारा इंद्र कुमार गुजराल सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद 1998 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए। इस बार बीजेपी और समता पार्टी साथ रहीं। बीजेपी को 182 सीटें मिलीं, जबकि समता पार्टी को 12 सीटें मिलीं। इस तरह एनडीए ने समर्थन जुटाया और केंद्र में सरकार बनाई। हालांकि, यह सरकार एक साल से कुछ अधिक समय तक चली और अप्रैल 1999 में संसद में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के कारण अटल सरकार एक वोट से गिर गई। 1999 के लोकसभा चुनाव में भी नीतीश भाजपा के साथ ही रहे। हालांकि, इस बार समता पार्टी का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका था और शरद यादव के गुट का जनता दल, रामकृष्ण हेगड़े की लोक शक्ति और नीतीश-जॉर्ज की समता पार्टी का विलय हो गया था। रामविलास पासवान भी इसका हिस्सा थे। इस तरह 1999 के लोकसभा चुनाव से पहले जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू अस्तित्व में आई। पार्टी ने 1999 का चुनाव एनडीए का हिस्सा बनकर लड़ा और बड़ी जीत हासिल की। 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें 182 रहीं, लेकिन कांग्रेस को सिर्फ 114 सीटें मिलीं। इस चुनाव में जेडीयू ने 21 सीटें जीतीं।