Bihar Election: NDA की बल्ले-बल्ले, 'इंडिया' गठबंधन की बढ़ी टेंशन, असदुद्दीन ओवैसी ने लिया ऐसा फैसला, हिल जाएगा बिहार

बिहार की राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है। एनडीए जहां अक्टूबर-नवंबर 2025 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार के नेतृत्व में सत्ता बचाने की कोशिश में जुटा है, वहीं विपक्षी महागठबंधन में भी गतिविधियां तेज हो गई हैं। इस बीच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के विधायक और प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि पार्टी ने तीसरा मोर्चा बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि एआईएमआईएम को अभी तक महागठबंधन की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है और वे अब और इंतजार नहीं करेंगे। यह स्थिति मुस्लिम वोटों के बिखराव की ओर इशारा करती है, जो सीधे एनडीए के पक्ष में जा सकता है।
महागठबंधन से निराश एआईएमआईएम अब तीसरे विकल्प की तैयारी में है
एआईएमआईएम विधायक अख्तरुल ईमान ने कहा है कि उनकी पार्टी बिहार में सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए महागठबंधन में शामिल होना चाहती थी। इसके लिए प्रस्ताव भी भेजा गया था, लेकिन न तो हां मिला और न ही अस्वीकृति। उन्होंने कहा कि अब हम महागठबंधन के जवाब का इंतजार नहीं करेंगे और तीसरे मोर्चे की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। AIMIM ने अपने स्तर पर चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
2020 में सेक्युलर फ्रंट का गठन किया, AIMIM ने सेंध लगाई
2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने मायावती की BSP, उपेंद्र कुशवाहा की RLSP, ओम प्रकाश राजभर की सुभाष पा और अन्य दलों के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट का गठन किया था। AIMIM ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि BSP को 1 सीट मिली। इन सीटों में सीमांचल की मुस्लिम बहुल सीटें शामिल हैं, जहां AIMIM ने सीधे तौर पर राजद के वोट बैंक में सेंध लगाई।
4 विधायक बाद में राजद में शामिल हो गए, अब सिर्फ अख्तरुल ईमान ही बचे
हालांकि, चुनाव जीतने के बाद AIMIM के पांच में से चार विधायक तेजस्वी यादव की पार्टी राजद में शामिल हो गए। अब पार्टी के पास बिहार में सिर्फ एक विधायक अख्तरुल ईमान बचे हैं, जो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इसके बावजूद AIMIM ने सीमांचल क्षेत्र में खुद को एक मजबूत मुस्लिम आवाज के रूप में स्थापित किया है।
मुस्लिम वोटों का बंटवारा महागठबंधन के लिए सिरदर्द बन सकता है
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में करीब 17 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। इनमें से ज्यादातर परंपरागत रूप से आरजेडी को वोट देते हैं। लेकिन एआईएमआईएम के सक्रिय होने से सीमांचल समेत कई इलाकों में मुस्लिम वोट बंट सकते हैं। इससे महागठबंधन को नुकसान हो सकता है और अप्रत्यक्ष रूप से एनडीए को फायदा हो सकता है।
चुनावी समीकरण बदलने वाली स्थिति
एआईएमआईएम के तीसरे मोर्चे के गठन से न सिर्फ नई राजनीतिक धुरी बन सकती है, बल्कि बिहार के चुनावी समीकरण भी पूरी तरह बदल सकते हैं। अगर मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता है तो इसका सीधा नुकसान इस महागठबंधन की रीढ़ माने जाने वाले आरजेडी और कांग्रेस को होगा। ऐसे में एनडीए को कमजोर विपक्ष का फायदा मिल सकता है।
बिहार में कितनी सीटों पर मुसलमानों का प्रभाव है?
बिहार की 243 सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 47 सीटों पर मुसलमानों की संख्या 50% है। जबकि 11 सीटों पर मुस्लिम वोट करीब 40% है। ऐसे में मुस्लिम वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने में सभी पार्टियां पीछे नहीं रहेंगी।