Bihar Election: क्या चुनाव आयोग अपनी ही कार्यप्रणाली का नहीं कर रहा पालन, विपक्ष ने लगाए ये आरोप
बिहार में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले, मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर राज्य में हलचल मची हुई है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण मामले में सुनवाई की। चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार में मतदाता सूची के सर्वेक्षण का काम जारी रहेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग से एक हफ्ते के अंदर जवाब भी मांगा है।
इससे पहले कब-कब हुआ था मतदाता सूची पुनरीक्षण? आपको बता दें कि चुनाव आयोग द्वारा देश के सभी या कुछ जगहों पर गहन पुनरीक्षण किया जा चुका है। चुनाव आयोग द्वारा यह कार्य 1952-56, 1957, 1961, 1965, 1966, 1983-84, 1987-89, 1992, 1993, 1995, 2002, 2003 और 2004 में किया गया था। आपको बता दें कि गहन पुनरीक्षण का अर्थ है कि मतदाता सूची को निर्वाचक पंजीयन अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत रूप से, घर-घर जाकर सत्यापन करके नए सिरे से तैयार किया जाता है।
2003 की एसआईआर वेबसाइट पर अपलोड
इससे पहले, चुनाव आयोग ने मौजूदा मतदाताओं से मतदाता सूची में बने रहने के लिए कभी भी दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए नहीं कहा था। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) से संबंधित 2003 की एसआईआर अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी है। इस पहल के बाद, अब 4.96 करोड़ मतदाताओं को दस्तावेज़ प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होगी। यदि ऐसे मतदाताओं के माता-पिता के नाम सूची में हैं, तो उन्हें कोई अन्य प्रासंगिक दस्तावेज़ प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होगी।
घर-घर जाकर मतदाता सूची का पुनरीक्षण करते थे ईआरओ
बता दें कि इससे पहले मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण में ईआरओ घर-घर जाकर 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी लोगों का विवरण दर्ज करते थे।
विपक्ष ने लगाया था आरोप
विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि यह प्रक्रिया मनमानी और दुर्भावनापूर्ण है, जिसका उद्देश्य गरीब, वंचित, दलित और पिछड़े समुदायों को उनके मताधिकार से वंचित करना है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया है कि 24 जून, 2025 के आदेश के तहत बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण से बड़े पैमाने पर मतदाताओं के मताधिकार से वंचित होने का खतरा है, जो संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। विपक्ष का यह भी कहना है कि चुनाव आयोग ने पारदर्शिता और निष्पक्षता के अपने सिद्धांतों का पालन नहीं किया है।

