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बिहार चुनाव 2025: 'नमाजवाद बनाम समाजवाद' की लड़ाई में शब्दों के तीर और बयानबाजी का संग्राम

बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी भले ही औपचारिक रूप से शुरू न हुई हो, लेकिन नेताओं की ज़ुबान से निकले तेज और तल्ख शब्दों ने चुनावी रणभूमि को अभी से गर्म कर दिया है। जहां एक ओर राजनीतिक दल विकास, बेरोजगारी और शिक्षा जैसे मुद्दों पर बात करने का दावा करते हैं......
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बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी भले ही औपचारिक रूप से शुरू न हुई हो, लेकिन नेताओं की ज़ुबान से निकले तेज और तल्ख शब्दों ने चुनावी रणभूमि को अभी से गर्म कर दिया है। जहां एक ओर राजनीतिक दल विकास, बेरोजगारी और शिक्षा जैसे मुद्दों पर बात करने का दावा करते हैं, वहीं वास्तविकता यह है कि बोलचाल की भाषा अब स्तरहीन और आक्रामक होती जा रही है।

बीते 10 दिनों में नेताओं के विवादित बयानों की झड़ी लग चुकी है। ‘नमाजवाद’, ‘मौलाना’, ‘छपरी’, ‘लफुआ’, ‘टपोरी’ जैसे शब्दों ने बिहार के चुनावी माहौल को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और सामाजिक ध्रुवीकरण के बीच उलझा दिया है।

तेजस्वी यादव और 'लफुआ राजनीति'

1 जुलाई 2025 को आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बीजेपी को आड़े हाथों लेते हुए कहा, "बीजेपी वाले मुझे मौलाना और नमाजवादी कहते हैं, लेकिन ये छपरी, टपोरी और लफुआ लोग बिहार की जनता को बेवकूफ नहीं बना सकते।" तेजस्वी का यह बयान न सिर्फ बीजेपी की आलोचना है, बल्कि स्थानीय बोली के ज़रिए युवा और ग्रामीण मतदाताओं से भावनात्मक जुड़ाव बनाने की कोशिश भी है। हालांकि, इससे राजनीतिक विमर्श की गुणवत्ता जरूर प्रभावित हो रही है।

बीजेपी की रणनीति: नमाजवाद बनाम समाजवाद

बीजेपी नेताओं ने बार-बार इस चुनाव में 'नमाजवाद' बनाम 'समाजवाद' का नैरेटिव पेश किया है। गौरव भाटिया, सुधांशु त्रिवेदी, और कई अन्य नेताओं ने आरजेडी और महागठबंधन को संविधान विरोधी बताते हुए उन्हें शरिया समर्थक तक कह डाला।
गौरव भाटिया ने तो यह भी कहा, "जो खुद को समाजवादी कहते हैं, उनका असली चेहरा नमाजवादी है। बीजेपी की यह रणनीति स्पष्ट रूप से मुस्लिम वोट बैंक को टारगेट करने और हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास है।

आरजेडी और महागठबंधन की जवाबी रणनीति

आरजेडी की ओर से तेज प्रताप यादव, अन्य प्रवक्ताओं और नेताओं ने लगातार बीजेपी को "टपोरी", "लफुआ", "छपरी" जैसे शब्दों से संबोधित किया है। उनका मकसद यह है कि वे बीजेपी के नेताओं को नीचा दिखाएं और युवाओं के गुस्से और जुबान का प्रतिनिधित्व करें।

तेज प्रताप यादव ने कहा, “बीजेपी के टपोरी लोग समाजवाद को नहीं समझ सकते, हम लालू जी के रास्ते पर हैं।”
इन शब्दों का उद्देश्य है कि जनता को यह अहसास कराया जाए कि बीजेपी की राजनीति सिर्फ नाम और धर्म की है, जबकि आरजेडी ‘समाजवाद’ और ‘विकास’ के लिए लड़ रही है।

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्पष्ट तस्वीर

बिहार की 17% मुस्लिम आबादी हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाती रही है। आरजेडी और कांग्रेस इस वोट बैंक पर परंपरागत पकड़ बनाए हुए हैं। बीजेपी की ‘नमाजवाद’ वाली लाइन स्पष्ट रूप से इस वोट बैंक में सेंध लगाने और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश मानी जा रही है। कांग्रेस प्रवक्ता ने इस पर जवाब देते हुए कहा, “बीजेपी का नमाजवाद नैरेटिव एक सांप्रदायिक साजिश है।”

243 सीटों पर 8 करोड़ मतदाता तय करेंगे भविष्य

बिहार में 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव होने हैं और 8 करोड़ से अधिक मतदाता तय करेंगे कि अगली सरकार किसकी होगी। ऐसे में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि दोनों पक्ष जाति, धर्म और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दों को हवा देकर भावनात्मक वोटिंग को टारगेट कर रहे हैं।

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