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Bihar Election 2025 : मुद्दों की धार और नेताओं के तेज की कसौटी बनेगा बिहार चुनाव; कुरुक्षेत्र में पढ़िए सारे समीकरण

मुद्दों की धार और नेताओं के तेज की कसौटी बनेगा बिहार चुनाव; कुरुक्षेत्र में पढ़िए सारे समीकरण

ऑपरेशन सिंदूर की आंच अभी पूरी तरह ठंडी भी नहीं हुई है कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण के लिए चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष अभियान (एसआईआर) से उपजे विवाद ने एक दिलचस्प मोड़ ले लिया है। बिहार में चुनाव का समय नजदीक आते ही सड़कों से लेकर मीडिया तक राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। मतदाता सूची के पुनरीक्षण के विशेष अभियान का विरोध सड़कों पर उतर रहा है और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की इस कवायद पर रोक लगाने के बजाय उसे मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए जरूरी दस्तावेजों में आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को शामिल करने पर विचार करने की सलाह दी है। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई तय की है, जबकि चुनाव आयोग 25 जुलाई तक मतदाता सूची के फॉर्म जमा करने का काम पूरा कर लेगा। दोनों पक्ष कोर्ट के इस रुख को अपनी जीत बता रहे हैं।

लोकतंत्र में हर मुद्दे का पैमाना जनता का फैसला होता है और बिहार विधानसभा चुनाव इसी साल अक्टूबर-नवंबर में होने हैं। यानी, ऑपरेशन सिंदूर हो या मतदाता सूची पुनरीक्षण के लिए चुनाव आयोग का विशेष अभियान, दोनों की परीक्षा बिहार की जनता की अदालत में होगी। क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों के अलावा, बिहार चुनाव में ज्वलंत राष्ट्रीय मुद्दों में ये तीनों मुद्दे सबसे प्रमुख होंगे। बिहार चुनाव के नतीजे यह दर्शाएंगे कि देश की जनता पहलगाम में हुई आतंकवादी हिंसा और उसके बाद अचानक हुए युद्धविराम और उसके बाद पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर भारतीय वायुसेना के हमलों को किस नज़रिए से देखती है। क्योंकि पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा निर्दोष पर्यटकों की हत्या के तुरंत बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में अपनी पहली जनसभा की थी, जिसमें उन्होंने ऐलान किया था कि दुनिया के किसी भी कोने में छिपे इस हमले के दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और उन्हें ऐसी सज़ा दी जाएगी कि उनकी रूह काँप जाएगी।

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को भाजपा और एनडीए प्रधानमंत्री के इसी संकल्प की पूर्ति के रूप में देख सकते हैं और कहेंगे भी। लेकिन विपक्ष यानी कांग्रेस, राजद और वामपंथी दलों का महागठबंधन सत्ताधारी दल को इस बात पर घेरेगा कि सेना की शानदार कामयाबी के बाद अचानक युद्धविराम क्यों किया गया और क्या भारत ने अमेरिका के दबाव में ऐसा किया, जैसा कि राष्ट्रपति ट्रंप लगातार दावा कर रहे हैं, और इस युद्ध में भारत को क्या नुकसान हुआ। भाजपा, जदयू, लोजपा और हम का गठबंधन विपक्ष के आरोपों को पाकिस्तान की भाषा बताकर उन पर सवाल उठाएगा, तो विपक्ष ट्रंप के बयानों, सिंगापुर में सीडीएस के बयान और इंडोनेशिया में भारतीय नौसेना के कैप्टन के बयान का हवाला देकर सरकार पर हमला बोलेगा। अब चुनाव नतीजे बताएंगे कि जनता दोनों दलों के आरोपों-प्रत्यारोपों को किस तरह लेती है।

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