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बिहार विधानसभा चुनाव: महागठबंधन में सियासी घमासान, मुकेश सहनी की नाराजगी की चर्चाएँ तेज

बिहार विधानसभा चुनाव: महागठबंधन में सियासी घमासान, मुकेश सहनी की नाराजगी की चर्चाएँ तेज

बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें जैसे-जैसे नजदीक आ रही हैं, राज्य की सियासत में हलचल तेज होती जा रही है। महागठबंधन के अंदर की राजनीति भी इस समय गर्मा गई है। 30 जुलाई को महागठबंधन के एक अहम बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के घर पर कई प्रमुख नेताओं ने शिरकत की। लेकिन इस बैठक में एक महत्वपूर्ण चेहरा गायब था, जो चर्चा का केंद्र बन गया। वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) के प्रमुख मुकेश सहनी इस बैठक में शामिल नहीं हुए, जिससे सियासी गलियारों में नई अटकलें लगने लगीं।

मुकेश सहनी ने बैठक में हिस्सा न लेकर अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को भेजा, जिससे ये कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं वे महागठबंधन से नाराज तो नहीं हो गए हैं। खासकर तब जब से उन्होंने इंडिया गठबंधन में 60 सीटों की मांग रखी थी, तब से उनकी नाराजगी और महागठबंधन के भीतर हलचल की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। उनके इस कदम ने महागठबंधन के नेताओं को एक नई चुनौती दी है, और अब ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या सहनी अपनी पार्टी की भविष्यवाणी को लेकर गंभीर हैं या फिर उनके लिए सीटों की संख्या से ज्यादा कुछ और मायने रखता है।

हालांकि, मुकेश सहनी के इस कदम के बाद महागठबंधन के नेताओं ने यह स्पष्ट किया कि इस बैठक में वीआईपी का प्रतिनिधित्व उनके प्रदेश अध्यक्ष के माध्यम से हुआ है, और यह किसी प्रकार की नाराजगी का संकेत नहीं है। फिर भी, राजनीति में इस तरह की घटनाएँ अपनी जगह पर सियासी संदेश देने का काम करती हैं। मुकेश सहनी का रुख और उनकी बढ़ती हुई सीटों की मांग महागठबंधन के अंदर तनाव को और बढ़ा सकती है, विशेषकर जब चुनावी गठबंधन को लेकर सभी दलों के बीच कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने हैं।

बिहार के राजनीतिक जानकारों के अनुसार, मुकेश सहनी का तेवर बदलना और अपनी सीटों की मांग को लेकर उनकी बढ़ती तात्कालिकता महागठबंधन के लिए एक चुनौती बन सकती है। अगर वीआईपी को उनकी मांगी गई 60 सीटें नहीं मिलती हैं, तो इससे गठबंधन में दरार आने का खतरा हो सकता है, जो अंततः चुनाव परिणामों पर प्रभाव डाल सकता है। बिहार विधानसभा चुनावों में एक मजबूत और समन्वित गठबंधन की जरूरत है, और ऐसे में अगर किसी भी दल के नेता गठबंधन से असंतुष्ट होते हैं, तो वह चुनावी रणनीति को प्रभावित कर सकता है।

बिहार की राजनीति में दलों की बढ़ती हुई सीटों की मांग और गठबंधन की असहमति किसी से छुपी नहीं है। महागठबंधन का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वे अपनी सीटों के बंटवारे और साझेदारी को कैसे संभालते हैं। जैसे-जैसे चुनावी घमासान तेज होगा, इस बात का निर्णय करना और भी अहम हो जाएगा कि कौन-सा दल किस रणनीति के तहत चुनावी मैदान में उतरेगा।

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