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कटिहार की बलरामपुर विधानसभा सीट बनी सभी दलों की प्राथमिकता, रणनीति में जुटे सियासी खेमा

बिहार चुनाव 2025: कटिहार की बलरामपुर विधानसभा सीट बनी सभी दलों की प्राथमिकता, रणनीति में जुटे सियासी खेमा

जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आ रहा है, राज्य के हर जिले की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ने लगी है। खासकर कटिहार जिले की बलरामपुर विधानसभा सीट इस बार विशेष चर्चा में है। यह सीट भले ही सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है, लेकिन राजनीतिक समीकरणों और जातीय संतुलन के लिहाज से यह तमाम दलों के लिए बेहद अहम बन गई है।

2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद अस्तित्व में आई यह सीट अब कटिहार लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। इसमें बारसोई और बलरामपुर प्रखंड शामिल हैं। इस सीट ने पिछली कुछ चुनावी लड़ाइयों में राजनीतिक पंडितों को चौंकाया है, क्योंकि यहां का वोटर अपेक्षाकृत अधिक सजग और बदलाव को लेकर निर्णायक भूमिका निभाने वाला रहा है।

क्यों खास है बलरामपुर विधानसभा सीट?

बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र का भूगोल और जनसांख्यिकी राजनीतिक दलों के लिए चुनौती और अवसर दोनों पेश करता है। यहां का मुस्लिम, यादव, कुशवाहा, पसमांदा और दलित मतदाता निर्णायक भूमिका निभाता है, वहीं सवर्ण मतदाता भी संख्या में प्रभावशाली हैं। ऐसे में कोई भी दल एकतरफा दावेदारी नहीं कर सकता। यहां जीत के लिए जरूरी है सटीक सामाजिक संतुलन और जमीनी जुड़ाव

पिछला चुनाव और संभावित दावेदार

पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट पर मुकाबला राजद, जदयू और AIMIM के बीच त्रिकोणीय रहा था। इस बार भी इन दलों के साथ-साथ भाजपा और लोजपा (रामविलास) की नजर भी इस सीट पर है।
हालांकि, अब तक किसी पार्टी ने आधिकारिक रूप से उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन स्थानीय नेताओं ने प्रचार और जनसंपर्क की गतिविधियां शुरू कर दी हैं।

क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं

बलरामपुर क्षेत्र में आज भी बाढ़, शिक्षा, बेरोजगारी, कृषि संकट और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी प्रमुख मुद्दे हैं। खासकर बारसोई प्रखंड के कई गांव आज भी सड़क और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। ग्रामीणों की मांग है कि इस बार उम्मीदवार सिर्फ जाति या पार्टी नहीं, बल्कि काम के आधार पर चुना जाए

सियासी दलों की रणनीति

हर दल बलरामपुर सीट को लेकर वोट बैंक का गणित बैठाने में जुटा है। राजद पिछली बार की बढ़त को बनाए रखना चाहता है, तो जदयू और भाजपा गठबंधन के बूते वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। AIMIM भी मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने आधार को मजबूत कर रही है।

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