बिहार में विधानसभा चुनाव की हलचल तेज, सभी दलों ने कसी कमर, विकास और वादों की होगी टक्कर

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की सरगर्मी अब साफ तौर पर दिखाई देने लगी है। राज्य की राजनीति एक बार फिर गर्म हो गई है और सभी प्रमुख दलों ने अपनी रणनीति को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। एनडीए गठबंधन जहां अपने बीते कार्यकाल के विकास कार्यों को सामने रखकर जनता का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है, वहीं महागठबंधन बेरोजगारी, महंगाई और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों को लेकर सरकार पर निशाना साध रहा है।
भाजपा, जदयू और लोजपा (रामविलास) मिलकर एक बार फिर से सत्ता में वापसी की रणनीति पर काम कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार विकास योजनाओं, आधारभूत ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार को लेकर जनसभाओं में अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं। वहीं भाजपा नेता तेज़ प्रचार अभियान के तहत युवाओं और महिलाओं को केंद्र में रखकर ‘डबल इंजन सरकार’ की बात को दोहरा रहे हैं।
इसके विपरीत, विपक्षी महागठबंधन जिसमें राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं, ने सरकार की नीतियों को जनविरोधी बताते हुए चुनावी बिगुल फूंक दिया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की बदहाली और भ्रष्टाचार को लेकर सरकार पर चौतरफा हमला कर रहे हैं। उनका दावा है कि एनडीए सरकार ने सिर्फ आंकड़ों का खेल खेला है, ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।
चुनावी रणनीति की बात करें तो दोनों ही पक्ष सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक व्यापक प्रचार अभियान चला रहे हैं। गांव-गांव तक जनसंपर्क और नुक्कड़ सभाएं हो रही हैं। इस बार का चुनाव पूरी तरह से मुद्दा आधारित होने की संभावना जताई जा रही है, जहां युवाओं का वोट निर्णायक भूमिका निभा सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जातीय समीकरणों के साथ-साथ इस बार मतदाता विकास और रोजगार जैसे मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देंगे।
वहीं चुनाव आयोग भी तैयारियों में जुट गया है। राज्य भर में मतदाता सूची का पुनरीक्षण चल रहा है और नए मतदाताओं को जोड़ने का अभियान जारी है। आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से आदर्श आचार संहिता का पालन करने और चुनावी प्रक्रिया को शांति से सम्पन्न कराने की अपील की है।