बिहार में जातीय जनगणना की गूंज के बीच आरजेडी में बड़ा संकेत, अगड़ी जाति के जगदानंद सिंह की विदाई और नई राजनीति का संदेश

बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सियासी सरगर्मी चरम पर है। विधानसभा चुनाव से पहले जातियों के 'अधिकार सम्मेलन', राजनीतिक दलों की रणनीतियों और नेतृत्व बदलाव ने माहौल पूरी तरह जातिगत विमर्श की धुरी पर केंद्रित कर दिया है। ऐसे समय में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) में एक अहम बदलाव ने बड़ी राजनीतिक चर्चा को जन्म दे दिया है।
अगड़ी जाति के जगदानंद सिंह की विदाई
राजद ने अगड़ी जाति से आने वाले वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर मंगनी लाल मंडल को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। यह बदलाव उस वक्त हुआ है जब जातीय पहचान की राजनीति पूरे शबाब पर है। चौंकाने वाली बात यह रही कि जगदानंद सिंह खुद अपने उत्तराधिकारी के स्वागत समारोह में शामिल नहीं हुए, जिससे नाराजगी की अटकलें तेज हो गईं।
जातीय संतुलन साधने की कोशिश या सामाजिक संकेत?
राजद ने मंच से एक बार फिर दलित, पिछड़ा, अति-पिछड़ा, अल्पसंख्यक और किसान वर्ग को केंद्र में रखने की रणनीति अपनाई। लालू प्रसाद यादव ने अपने भाषण में 'सामाजिक न्याय' और 'तेजस्वी यादव की ताजपोशी' की बात करते हुए, पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक को साधने का प्रयास किया।
हालांकि, मंच की तस्वीर और संगठनात्मक फेरबदल ने यह भी साफ कर दिया कि पार्टी में 'भूरा बाल' (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, लाला) की स्थिति और भी सीमित होती जा रही है।
मिलर हाई स्कूल मैदान बना जातीय राजनीति का केंद्र
राजधानी पटना के मिलर हाई स्कूल मैदान में इन दिनों विभिन्न जातियों के 'अधिकार सम्मेलन' का दौर चल रहा है। इसी जगह से कुशवाहा, यादव, पासवान, मुसलमान और अन्य जातियों के नेताओं ने अपने समाज की हिस्सेदारी और सम्मान की आवाज़ उठानी शुरू कर दी है।
यह आयोजन न सिर्फ सत्ता में भागीदारी की मांग है, बल्कि जातीय जनगणना से उपजे नफे-नुकसान को भुनाने की रणनीति का हिस्सा भी बनता जा रहा है।
भाजपा और जेडीयू की निगाहें भी इसी जमीन पर
भले ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने जातीय जनगणना पर अलग-अलग स्टैंड लिया हो, लेकिन दोनों ही दल इस समय जातिगत सम्मेलन और समीकरण साधने में जुटे हैं। भाजपा अपने सवर्ण और पिछड़ा वर्ग को साधने की कोशिश कर रही है, वहीं जदयू नरम-सख्त रुख के साथ अपने पुराने आधार को बचाए रखना चाहती है।
क्या संकेत दे रही है राजद की नई तस्वीर?
तेजस्वी यादव की अगुवाई में राजद अब तेजी से 'मूल वोट बैंक' की ओर लौटती हुई दिख रही है। संगठन में दलित और पिछड़े नेताओं की भागीदारी को बढ़ावा देकर वह 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए एक ठोस सामाजिक गठबंधन की नींव रख रहे हैं।
मगर यह भी सच है कि अगड़ी जातियों की निरंतर उपेक्षा से पार्टी के 'विस्तारवादी एजेंडे' को झटका लग सकता है। अगर राजद इस संतुलन को नहीं साध पाई, तो इसका फायदा भाजपा या अन्य दल उठा सकते हैं।