आखिर क्यों फिर गरमाने लगा NRC का मुद्दा? बिहार-बंगाल में ‘बैकडोर’ तो असम में सामने से ‘अवैध वोटर्स’
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराया जा रहा है, जिससे सियासी पारा चढ़ा हुआ है। इस बढ़ी सरगर्मी के बीच चुनाव आयोग (ईसी) ने अपडेटेड वोटर लिस्ट को लेकर बड़ा अपडेट दिया है, जिसमें एसआईआर प्रक्रिया के तहत 35 लाख से ज़्यादा वोटरों का नाम लिस्ट से हटाया जाएगा। चुनाव आयोग की इस मुहिम पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया है। आरोप लग रहे हैं कि सरकार बिहार और बंगाल में पिछले दरवाजे से और असम में सीधे हमले से वोटरों को बाहर करने की तैयारी में है। असम सरकार ने चुनाव आयोग से अपील की है कि एसआईआर तैयार करते समय यह ध्यान रखा जाए कि एनआरसी की प्रक्रिया चल रही है। इसके पूरा होने के बाद ही आगे कदम उठाया जाए।
दरअसल, बिहार के 7.9 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 3.5 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए हैं, यह खुलासा एसआईआर में हुआ है। इसमें बताया गया है कि 2.2 प्रतिशत मतदाता स्थायी रूप से राज्य से बाहर चले गए हैं, लगभग 1.59 प्रतिशत की मृत्यु हो चुकी है। इसके अलावा, 0.73 प्रतिशत मतदाता एक से अधिक स्थानों पर पंजीकृत हैं। हालाँकि, एसआईआर प्रक्रिया अब 80 प्रतिशत पूरी हो चुकी है और 25 जुलाई तक जारी रहेगी। अद्यतन आंकड़ों में यह संख्या बढ़ सकती है। चुनाव आयोग का दावा है कि नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के नागरिक मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं। अब उनके नाम हटा दिए जाएँगे।
असदुद्दीन ओवैसी एसआईआर को लेकर नाराज़
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक संवैधानिक संस्था बयान नहीं दे रही है और सूत्रों के माध्यम से बातें सामने आ रही हैं। ये सूत्र कौन हैं? चुनाव आयोग को यह तय करने का अधिकार किसने दिया कि कोई नागरिक है या नहीं? हमारी पार्टी ने सबसे पहले कहा था कि यह पिछले दरवाजे से एनआरसी है। उन्होंने कहा कि पार्टी सदस्यों को बीएलओ (ब्लॉक लेवल ऑफिसर) से मिलने के लिए कहा जाएगा।
उन्होंने पूछा, 'सर, यह 2003 में किया गया था। उस समय कितने विदेशी नागरिकों का खुलासा हुआ था? उनके (चुनाव आयोग के) पास (नागरिकता निर्धारित करने का) कोई अधिकार नहीं है। गृह मंत्रालय, एसपी बॉर्डर के पास अधिकार है। अगर उनके पास अधिकार नहीं है, तो वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसलिए मैंने कहा कि यह पिछले दरवाजे से एनआरसी है। नवंबर में बिहार में चुनाव हैं। वे सीमांचल के लोगों को शक्तिहीन क्यों बनाना चाहते हैं?'
ममता बनर्जी ने असम सरकार पर आरोप लगाया
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी असम सरकार पर बंगाल में एनआरसी लागू करने की कोशिश करने का आरोप लगा रही हैं। एक हालिया मामले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर सदमा लगा कि असम में विदेशी न्यायाधिकरण ने कूचबिहार के दिनहाटा में 50 साल से ज़्यादा समय से रह रहे राजबंशी उत्तम कुमार ब्रजबासी को एनआरसी नोटिस जारी किया है। वैध पहचान पत्र देने के बावजूद, उन्हें 'विदेशी-अवैध प्रवासी' बताकर परेशान किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ममता ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र पर एक सुनियोजित हमला करार दिया। उन्होंने कहा कि यह इस बात का प्रमाण है कि असम में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार बंगाल में एनआरसी लागू करने की कोशिश कर रही है, जहाँ उसके पास न तो कोई शक्ति है और न ही अधिकार क्षेत्र। हाशिए पर पड़े समुदायों को डराने, उनके अधिकारों से वंचित करने और उन्हें निशाना बनाने का एक पूर्व-नियोजित प्रयास किया जा रहा है। यह असंवैधानिक अतिक्रमण जनविरोधी है और लोकतांत्रिक सुरक्षा उपायों को नष्ट करने और बंगाल के लोगों की पहचान मिटाने के भाजपा के खतरनाक एजेंडे को उजागर करता है।
1991 में असम गईं महिलाओं पर नागरिकता का संकट
असम में बंगाल से जुड़ा एक और मामला सामने आया। दरअसल, बंगाल प्रवासी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद समीरुल इस्लाम ने कहा कि कूचबिहार की एक 52 वर्षीय महिला को एनआरसी में शामिल होने की उसकी याचिका खारिज होने के बाद वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह 1991 में राज्य के एक व्यक्ति से शादी करने के बाद असम आई थी।
आरती दास नाम की महिला का कहना है कि उनके पिता 1968 से बंगाल के एक सरकारी स्कूल में शिक्षक थे और उनका जन्म और पालन-पोषण कूचबिहार में हुआ था। हालाँकि, उनकी और उनकी भाभी की एनआरसी में शामिल होने की याचिका विदेशी न्यायाधिकरण ने खारिज कर दी थी। 2019 में जब पहली बार उनसे असम छोड़ने या परिणाम भुगतने के लिए कहा गया, तो वह बहुत निराश हुईं, लेकिन अब उन्होंने इसके साथ जीना सीख लिया है। महिला ने इस संबंध में तृणमूल नेताओं से मदद की गुहार लगाई है। टीएमसी नेता उनके घर आए हैं और उन्हें कानूनी मदद का आश्वासन दिया है।
डेरेक ओ'ब्रायन ने इसकी तुलना नाज़ी शासन से की
पिछले महीने, तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने बिहार और पश्चिम बंगाल में मतदाता सत्यापन अभियान को लेकर चुनाव आयोग पर तीखा हमला किया था और दावा किया था कि यह पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने का एक गुप्त प्रयास है। उन्होंने कहा था, "चुनाव आयोग पिछले दरवाजे से एनआरसी लाने की कोशिश कर रहा है। 1935 में नाज़ी शासन के दौरान, आपको पूर्वज पास देना पड़ता था। क्या यह उस नाज़ी पूर्वज पास का नया संस्करण है?
असम में जल्द ही एनआरसी
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, असम के अधिकारियों ने चुनाव आयोग को बताया है कि यह एकमात्र राज्य है जिसने एनआरसी तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, इसलिए जब भी चुनाव आयोग को अपनी समय-सीमा तय करनी चाहिए और अगर वह राज्य की मतदाता सूची की एसआईआर प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है, तो उसे एनआरसी को भी ध्यान में रखना चाहिए। उसे मतदाता सूची में संशोधन करने से पहले एनआरसी का इंतज़ार करना चाहिए। असम ने यह कदम आयोग द्वारा पिछले महीने बिहार में एसआईआर प्रक्रिया शुरू करने के बाद उठाया है।
पिछले महीने आयोजित एक विशेष विधानसभा सत्र में, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि राज्य सरकार अभी भी बांग्लादेश की सीमा से लगे ज़िलों में 20 प्रतिशत और शेष ज़िलों में 10 प्रतिशत सूची के पुनर्सत्यापन की प्रक्रिया में है। वहीं, कहा जा रहा है कि राज्य में जल्द ही एनआरसी जारी होने वाला है। यह एक-दो महीने में जारी हो सकता है। इसके जारी होने के बाद अवैध मतदाताओं पर कार्रवाई की जा सकती है।
असम में कांग्रेस का आरोप: क्या लगा रही है?
असम कांग्रेस का दावा है कि राज्य सरकार और चुनाव अधिकारी असम में कांग्रेस समर्थक मतदाताओं को 'डी' मतदाता (संदिग्ध मतदाता) के रूप में चिह्नित करके उन्हें हटाने की साजिश रच रहे हैं। पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि असम की संक्षिप्त समीक्षा प्रक्रिया के दौरान, भाजपा निराधार ऑनलाइन शिकायतों के ज़रिए कुछ ख़ास मतदाताओं को अलग-थलग करने की योजना बना रही थी, जबकि पड़ोसी राज्यों के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही थी।
असम प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रिपुन बोरा और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता चरण सिंह सपरा ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग भाजपा और केंद्र सरकार की 'कठपुतली' बन गया है। उनका कहना है कि महाराष्ट्र और बिहार के बाद, भाजपा असम में भी 2026 के असम विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दौरान विपक्षी मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाने की ऐसी ही रणनीति बना रही है।

