2400 किमी लंबी खूनी साजिश: बिहार से गायब नाबालिग की लाश बेंगलुरु में ट्रॉली बैग में मिली, ऐसे खुला सनसनीखेज कत्ल का राज

21 मई की सुबह बेंगलुरु के चंदापुरा रेलवे ब्रिज के नीचे एक लावारिस नीले रंग का ट्रॉली बैग पड़ा मिला। शुरुआत में किसी को अंदाज़ा नहीं था कि उस बंद बैग में क्या हो सकता है। लेकिन जैसे ही एक कूड़ा बीनने वाले ने उत्सुकतावश उस बैग को खोलने की कोशिश की और अंदर झांका, तो उसके होश उड़ गए। उस ट्रॉली बैग में एक नाबालिग लड़की की ठूंसी हुई लाश थी।
सोशल मीडिया से 2400 किलोमीटर दूर हुई पहचान
शुरुआती जांच में बेंगलुरु की सूर्यनगर पुलिस को इस लाश के बारे में कोई सुराग नहीं मिला। न लड़की की कोई पहचान थी, न ही कोई दस्तावेज या पहचान पत्र मिला। लेकिन किस्मत से लड़की का चेहरा पूरी तरह साफ था और उसी की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। इस वायरल तस्वीर ने 2400 किलोमीटर दूर बिहार के नवादा जिले में हलचल मचा दी। वहां के हिसुआ गांव में 15 मई से लापता एक 17 वर्षीय लड़की रिया की तलाश हो रही थी। जब उसके परिजनों और पुलिस ने वायरल तस्वीर देखी, तो शक गहराया कि कहीं ये वही रिया तो नहीं।
हिसुआ पुलिस ने फौरन बेंगलुरु संपर्क किया। रिया के पिता निर्मल दास ने जब बेंगलुरु पहुंचकर लाश की पहचान की, तो ये साफ हो गया कि बैग से बरामद लाश उनकी बेटी रिया की ही थी।
सवाल खड़े हुए: कैसे पहुंची रिया बेंगलुरु?
अब सबसे बड़ा सवाल ये था कि बिहार की एक नाबालिग लड़की बेंगलुरु कैसे पहुंची? जांच में सामने आया कि रिया के लापता होने के पीछे आशिक कुमार नाम के युवक का नाम पहले से ही परिजनों द्वारा संदेह के घेरे में था। आशिक नवादा के ही पास के गांव का रहने वाला है और तीन साल से बेंगलुरु में नौकरी करता है। उसकी पत्नी और बच्चे नवादा में रहते हैं।
15 मई: रिया को लेकर गया स्टेशन पहुंचा आशिक
पुलिस जांच में सामने आया कि 15 मई को आशिक रिया को बहला-फुसला कर घर से भगाकर गया रेलवे स्टेशन लाया था। वहां से दोनों पहले कोलकाता और फिर कोलकाता से ट्रेन पकड़कर बेंगलुरु पहुंचे। बेंगलुरु में आशिक अपने फूफा-फूफी के घर में ही रह रहा था, और वहीं उसने रिया को भी रखा।
20 मई: मामूली झगड़े से मर्डर तक
20 मई की सुबह जब फूफा-फूफी नौकरी पर चले गए, तब घर में केवल रिया और आशिक थे। किसी बात पर दोनों में झगड़ा हुआ। पुलिस के अनुसार, गुस्से में आशिक ने पहले रिया को ज़मीन पर पटका, फिर उसके सीने पर बैठकर गला घोंट दिया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि रिया की मौत गला दबाने से हुई और उसकी गर्दन की हड्डी टूटी हुई थी।
हत्या के बाद घबराया आशिक अपने दोस्तों को बुलाता है। लेकिन उन्हें सच नहीं बताता कि उसने मर्डर किया है। जब दोस्त घर पहुंचते हैं, तो उन्हें रिया की लाश देखकर सच्चाई का पता चलता है। आशिक उन्हें धमकाता है कि वो सब पुलिस को यही कहें कि लड़की ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। इसके लिए वे मिलकर घर की खिड़की का शीशा अंदर से तोड़ते हैं ताकि आत्महत्या का नाटक रचा जा सके। लेकिन यही शीशा, जो बाहर गिरा था, पुलिस के लिए अहम सबूत बन गया।
लाश को ठिकाने लगाने की प्लानिंग
फूफा-फूफी के घर लौटने पर आशिक ने उन्हें भी धमकाया और सलाह दी गई कि लाश को कहीं फेंक दो ताकि सबूत ही न बचे। फिर एक ट्रॉली बैग में लाश को ठूंसकर रखा गया। आशिक के फूफा ने ऑनलाइन कैब बुक की। रात के अंधेरे में कैब से आशिक और उसके दोस्त चंदापुरा रेलवे ब्रिज के पास पहुंचे। वहीं बैग को ब्रिज के नीचे फेंक दिया गया। कैब ड्राइवर को संदेह तो हुआ, लेकिन किराया लेकर वह चला गया। अगले दिन सुबह एक कूड़ा बीनने वाले को बैग मिला और इस पूरे हत्याकांड की परतें खुलती चली गईं।
बिहार-बेंगलुरु पुलिस का संयुक्त ऑपरेशन
रिया की पहचान होते ही नवादा की हिसुआ पुलिस की टीम बेंगलुरु पहुंची। दोनों राज्यों की पुलिस ने संयुक्त रूप से केस की तह तक जाने का फैसला किया। नवादा में पूछताछ के बाद आशिक कुमार को हिरासत में लिया गया और साथ ही उसके छह अन्य सहयोगियों को भी पकड़ा गया। इनमें बेंगलुरु में रहने वाले फूफा-फूफी और कुछ दोस्त शामिल थे। बेंगलुरु पुलिस सभी आरोपियों को नवादा से हिरासत में लेकर बेंगलुरु ले आई, जहां हत्या के बाद की घटनाओं और साजिश की पूरी कहानी सामने आई।
कानून की गिरफ्त में गुनहगार
बेंगलुरु पुलिस ने हत्या, आपराधिक साजिश, अपहरण और सबूत मिटाने की धाराओं में केस दर्ज किया है। इस मामले में मुख्य आरोपी आशिक कुमार को कड़ी सज़ा दिलाने की तैयारी है, जबकि उसके सहयोगियों की भूमिका भी जांच के घेरे में है।
सामाजिक सवाल और चेतावनी
इस खौफनाक घटना ने समाज में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कैसे एक नाबालिग लड़की को बहला-फुसला कर हजारों किलोमीटर दूर ले जाया गया? क्या माता-पिता, समाज और पुलिस व्यवस्था को और सतर्क होने की जरूरत नहीं? क्या सोशल मीडिया के बिना कभी यह हत्या सुलझ पाती? रिया की हत्या सिर्फ एक क्राइम नहीं, बल्कि उस सिस्टम की खामियों का आईना है, जहां एक नाबालिग लड़की का ट्रैक रखना मुश्किल हो जाता है और वह एक बैग में बदल जाती है।
निष्कर्ष:
2400 किलोमीटर की इस खूनी यात्रा ने न सिर्फ एक मासूम की जान ली, बल्कि परिवार को तोड़कर रख दिया। पुलिस की तत्परता, सोशल मीडिया की भूमिका और अंत में सच की जीत ने इस केस को हल किया, लेकिन रिया की मौत उन तमाम लड़कियों के लिए चेतावनी है जो किसी के झूठे प्यार में पड़कर अपनी ज़िंदगी को जोखिम में डाल देती हैं। अब ज़रूरत है जागरूकता, सतर्कता और सख्त कानून की, ताकि दोबारा कोई रिया इस तरह दर्दनाक अंजाम न पाए।