श्री गणेश कैसे बने गजानन जानिए
हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पर्व गणेश चतुर्थी शुरू हो चुकी हैं वही भगवान गणेश के भक्त उन्हें प्रसन्न करने में लगे हुए हैं इसके लिए वे बप्पा की पूजा अर्चना भी करते हैं वही श्रीगणेश ने गजानन रूप आदिश्वर महादेव की कृपा से पाया हैं भाद्रपद शुक्ल षष्ठी पर गणपति के इसी रूप की पूजा अर्चना किया जाना समस्त दोषों का हरण करने वाला माना जाता हैं वही इसी स्वरूप में ब्रह्मा जी ने उन्हें गणाध्यक्ष पुकारा।
वे गणेश कहलाएं। वही श्रीगणेश का यह मंगलकारी रूप ही त्रिलोक में मान पाया हैं। वही माता पार्वती ने लंबोदर को सुरक्षा का जिम्मा सौंपा और स्वयं स्नान को चली गई थी। वही मां की आज्ञा पाकर बाल श्री गणेश पूरे मनोयोग से भवन की सुरक्षा में जुट गए। इसी समय भगवान शिव का घर आना हुआ। श्री गणेश ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया।
भगवान शिव ने उन्हें समझाया, मनाया, मगर वे नहीं मानें इससे पिता पुत्र में विवाद बढ़ने लगा और भीषण युद्ध छिड़ गया। वही लंबोदर की असीम शक्तियां शिव को अधीर करने लगी। उनके सभी गण बालगणेश से परास्त हो गए। क्रोध में भगवान शिव ने उन पर त्रिशूल का भीषण प्रहार किया। इससे लंबोदर का मस्तिष्क शरीर से अलग हो गया। गणेश की करूण पुकार जब माता ने सुनी तो वे शीघ्र बाहर आई। यहां उन्होनं शिव के समक्ष बेटे को निर्जीव पाया और तुरंत समझ गई कि क्या हुआ होगा। इससे माता पार्वती दुख से भर गई।
मां पार्वती की आंखों में अश्रु देखकर भोलेनाथ को अपनी भूल का अहसास हुआ। उन्होंने नंदीश्वर को ऐसे बालक का सिर लाने को कहा जिसकी माता उससे विपरीत दिशा में सिर करे हो। शिवाज्ञा पा कर नंदी नन्हें गज का सिर ले आएं। इसे शिव ने गणेश के घड़ से जोड़ उन्हें पुनर्जीिवत किया।।

