वीडियो में जाने 'रुद्राष्टकम स्तोत्र' का पाठ क्यों है हर संकट का समाधान? जानिए श्रीराम द्वारा की गई स्तुति की चमत्कारी कथा
हिंदू धर्म में भगवान शिव को संहार के देवता के रूप में जाना जाता है, लेकिन वे केवल विनाश नहीं बल्कि करुणा, प्रेम और भक्ति के भी प्रतीक हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्र और स्तोत्रों की रचना की गई है, जिनमें से एक अत्यंत प्रभावशाली और लोकप्रिय स्तोत्र है – 'रुद्राष्टकम'। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का अत्यंत प्रभावशाली वर्णन करता है और कहा जाता है कि इसका पाठ करने से समस्त प्रकार की बाधाएं, भय और शत्रु नष्ट हो जाते हैं।
रुद्राष्टकम की रचना किसने की थी?
'रुद्राष्टकम स्तोत्र' की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी, जो रामचरितमानस के रचयिता भी हैं। यह स्तोत्र संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसका उल्लेख श्रीरामचरितमानस के उत्तरकांड में मिलता है। यह आठ श्लोकों में भगवान शिव के रूप, स्वभाव, शक्ति और स्वरूप की अद्भुत व्याख्या करता है। तुलसीदास जी ने इस स्तोत्र की रचना तब की थी जब श्रीराम जी ने शिव की आराधना करने हेतु उनके स्तुति रूप में कुछ रचने को कहा था।
श्रीराम ने भी किया था रुद्राष्टकम का पाठ
मान्यता है कि जब श्रीराम ने भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए रुद्राष्टकम का पाठ किया, तब कैलाशपति महादेव स्वयं प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए। इस घटना का वर्णन उत्तरकांड में किया गया है, जहाँ भगवान राम ने शिव को 'रघुकुल तिलक' कहकर प्रणाम किया और रुद्राष्टकम का उच्चारण किया। इसका गूढ़ अर्थ यह है कि यह स्तोत्र केवल भक्तों के लिए ही नहीं, बल्कि स्वयं ईश्वरावतार श्रीराम के लिए भी सिद्धि और आशीर्वाद का माध्यम था।
रुद्राष्टकम का चमत्कारी प्रभाव
यह स्तोत्र शुद्ध भाव और श्रद्धा से किया जाए तो अत्यंत चमत्कारी परिणाम देता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रुद्राष्टकम का नियमित पाठ करने से —
शत्रुओं का नाश होता है।
भय, बाधाएं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा मिलती है।
मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
संतान सुख, विवाह बाधा, रोग और आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है।
विशेषकर सावन के पवित्र महीने में, जब शिवभक्ति अपने चरम पर होती है, तब रुद्राष्टकम का पाठ हजार गुना फलदायी माना जाता है।
रचना शैली और भाव
रुद्राष्टकम की रचना संस्कृत के 'स्तोत्र काव्य' शैली में हुई है। इसमें 'अष्टक' छंद का प्रयोग किया गया है, यानी आठ श्लोकों का समूह। प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव के स्वरूप का विश्लेषण करते हुए उनके 'निर्गुण' और 'सगुण' दोनों रूपों को दर्शाया गया है। एक तरफ जहाँ उन्हें 'वर्णातीत' और 'मन-बुद्धि से परे' कहा गया है, वहीं दूसरी ओर उनकी जटाओं में गंगा, गले में नाग, त्रिनेत्रधारी और त्रिशूलधारी जैसे भौतिक स्वरूपों का भी वर्णन मिलता है।
रुद्राष्टकम का पाठ कैसे करें?
इसे रोजाना ब्रह्म मुहूर्त या शिव पूजा के समय पढ़ना शुभ माना जाता है।
शिवलिंग के सामने शुद्ध वस्त्र पहनकर बैठें और ध्यानपूर्वक पाठ करें।
सोमवार, प्रदोष और महाशिवरात्रि जैसे विशेष दिनों में इसका पाठ विशेष फल देता है।
पाठ के बाद भगवान शिव को बिल्वपत्र, जल, दूध और भस्म अर्पित करें।

