भगवान शिव को क्यों प्रिय है भस्म? 3 मिनट के इस पौराणिक वीडियो में जानिए इसका आध्यात्मिक रहस्य और अर्पण करने के चमत्कारी लाभ

सनातन धर्म में भगवान शिव को अमर कहा गया है। शिव का न आदि है न अंत। सच्चे मन से की गई थोड़ी सी पूजा से ही देवों के देव महादेव प्रसन्न हो जाते हैं। भोलेनाथ का रहन-सहन, निवास और गण अन्य देवताओं से अलग हैं। शास्त्रों के अनुसार शिव को भस्म बहुत प्रिय है, इसलिए वे इसे अपने शरीर पर धारण करते हैं। भस्म दो शब्दों भ और स्म से मिलकर बना है। भ का अर्थ है विनाश और स्म का अर्थ है स्मरण। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में भस्म के कारण पाप धुल जाते हैं और भगवान का स्मरण होता है। इसे लगाने का एक प्रतीकात्मक महत्व यह भी है कि यह हमें जीवन की नश्वरता का निरंतर स्मरण कराती रहती है।
भस्म का महत्व
शिव पुराण के अनुसार भस्म धारण करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। भस्म को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है। जो व्यक्ति पवित्रता के साथ भस्म धारण करता है और भगवान शिव की स्तुति करता है, उसे शिवलोक में सुख मिलता है। शिवपुराण में ब्रह्माजी ने नारदजी से भस्म की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि यह सभी प्रकार के शुभ फल प्रदान करती है तथा जो व्यक्ति इसे अपने शरीर पर लगाता है, उसके सभी दुख और शोक नष्ट हो जाते हैं। भस्म शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाती है तथा मृत्यु के समय भी अपार आनंद प्रदान करती है।
भगवान शिव को भस्म चढ़ाने के लाभ
चूंकि शिव वैरागी हैं, इसलिए उन्हें भस्म चढ़ाना भी अच्छा माना जाता है। वैदिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शिव को भस्म से सुशोभित करने पर भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं तथा सभी कष्टों को दूर करते हैं। इसके अलावा इसे चढ़ाने से भक्त का मन सांसारिक मोह से मुक्त हो जाता है। मान्यता है कि महिलाओं को शिवलिंग पर भस्म नहीं चढ़ानी चाहिए, क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है।
पौराणिक मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार लोग राम का नाम जपते हुए शव को ले जा रहे थे, तभी शिव ने उन्हें देखा और कहा कि वे मेरे प्रभु का नाम जपते हुए शव को ले जा रहे हैं। फिर शिवजी श्मशान पहुंचे और जब सभी चले गए तो महादेव ने श्री राम को याद किया और उस चिता की राख को अपने तन पर धारण कर लिया। इसी तरह एक अन्य कथा के अनुसार जब सती की मृत्यु के बाद शिव तांडव कर रहे थे, तब श्री हरि ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को भस्म कर दिया था। तब भगवान शिव देवी सती से वियोग का दर्द सहन नहीं कर पाए और उन्होंने उस समय सती की राख को अपने तन पर लगा लिया। मान्यता है कि तभी से शिवजी को भस्म बहुत प्रिय है।