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वैष्णो माता दरबार में दर्शनों से पहले क्यों जरूरी है अर्द्धकुंवारी मंदिर में माथा टेकना? वीडियो मे जाने रहस्यमयी पौराणिक कथा 

वैष्णो माता दरबार में दर्शनों से पहले क्यों जरूरी है अर्द्धकुंवारी मंदिर में माथा टेकना? वीडियो मे जाने रहस्यमयी पौराणिक कथा 

नवरात्रि के मौके पर माता वैष्णो देवी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। हर साल लाखों भक्त माता वैष्णो के दरबार में माथा टेकने आते हैं। त्रिकुटा पर्वत पर स्थित मां वैष्णो देवी के दर्शन के लिए भक्त करीब 14 किलोमीटर की चढ़ाई पूरी करते हैं। आपको बता दें कि मां वैष्णो देवी को त्रिकुटा के नाम से जाना जाता है, इसलिए इस पर्वत को त्रिकुटा पर्वत कहा जाता है। वैष्णो देवी की यात्रा के दौरान बाणगंगा और अर्धकुंवारी मंदिर भी आते हैं। माता रानी के भक्त अर्धकुंवारी मंदिर के दर्शन भी जरूर करते हैं। इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं।


अर्धकुंवारी मंदिर की मान्यताएं
अर्धकुंवारी मंदिर को गर्भजून गुफा के नाम से भी जाना जाता है। इस गुफा को लेकर मान्यता है कि माता वैष्णो देवी ने यहां पूरे 9 महीने तक तपस्या की थी। कहा जाता है कि जो भी भक्त इस गुफा के दर्शन करता है उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। गर्भजून गुफा का आकार दिखने में बहुत छोटा है लेकिन यहां से हर तरह का व्यक्ति आसानी से गुजर सकता है। उसे बस अपने मन और हृदय में माता रानी के प्रति भक्ति रखनी चाहिए और किसी के प्रति द्वेष नहीं रखना चाहिए। इतना ही नहीं गर्भजून गुफा के दर्शन करने से भक्तों का जीवन सुखमय और समृद्ध हो जाता है।

अर्धकुंवारी मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में श्रीधर नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह माता रानी का परम भक्त था। वह दिन-रात माता वैष्णो की भक्ति में लीन रहता था। एक दिन माता रानी ने कन्या रूप में श्रीधर को दर्शन दिए और उसे एक भव्य भंडारे का आयोजन करने को कहा। देवी मां के आशीर्वाद से श्रीधर ने भंडारे का आयोजन किया, जिसमें भैरव नाथ को भी आमंत्रित किया। भैरव नाथ ने वैष्णव भंडारे में मांस और मदिरा की मांग की। उस भंडारे में कन्या रूप में वैष्णो देवी भी मौजूद थीं। उन्होंने भैरव से कहा कि यह वैष्णव भंडारा है, यहां मांसाहारी भोजन नहीं मिलेगा। जब भैरव नाथ ने उस कन्या को पकड़ने का प्रयास किया तो माता को उसके छल का पता चल गया और वे अपना रूप बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर चली गईं। 

भैरव नाथ भी उनके पीछे-पीछे चल दिए। कहा जाता है कि माता वैष्णो की रक्षा के लिए हनुमान जी भी उनके साथ थे। इसी बीच बजरंगबली को प्यास लगी और उन्होंने माता रानी से जल पिलाने का आग्रह किया। तब माता वैष्णो ने धनुष-बाण से पर्वत पर जल की धारा निकाली, जिसमें उन्होंने अपने केश भी धोए। बाद में इस स्थान को बाणगंगा के नाम से जाना जाने लगा। इसके बाद देवी एक गुफा में चली गईं जहां उन्होंने पूरे 9 महीने तक तपस्या की। कथा के अनुसार जब भैरव नाथ मां वैष्णो का पीछा करते हुए उस गुफा में पहुंचे तो माता वैष्णो ने भैरव नाथ का वध कर दिया। अपने अंतिम क्षणों में भैरव नाथ ने अपनी भूल की क्षमा मांगी। कहा जाता है कि इसके बाद माता वैष्णो ने भैरव नाथ को वरदान देते हुए कहा कि तुम्हारे दर्शन के बिना मेरे दर्शन पूरे नहीं होंगे। तब से माता वैष्णो देवी के दर्शन करने वाला हर भक्त भैरव नाथ मंदिर भी जाता है।

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