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जहां शिव में समाए हैं विष्णु! वीडियो में जाने भारत के इस एकमात्र मंदिर की रहस्यमयी कहानी जहां शिव को चढ़ाई जाती है नारायण की अप्रिय चीज 

जहां शिव में समाए हैं विष्णु! वीडियो में जाने भारत के इस एकमात्र मंदिर की रहस्यमयी कहानी जहां शिव को चढ़ाई जाती है नारायण की अप्रिय चीज 

कल 23 जुलाई 2025 को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया गया। इस दिन लोग भगवान शंकर और माता पार्वती की भक्ति भाव से पूजा और व्रत करते हैं। भगवान शिव ब्रह्मांड के कण-कण में विराजमान हैं। हमारे देश में भोलेनाथ के अनेक भव्य और पौराणिक मंदिर हैं। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर इन सभी मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है। लोग दूर-दूर से यहां पूजा और दर्शन के लिए आते हैं। महादेव के इन्हीं प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है द्वादश ज्योतिर्लिंग। इन 12 मंदिरों में शक्ति शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग की पूजा में कुछ चीजों का प्रयोग वर्जित माना गया है। इसमें भोलेनाथ की पूजा में केतकी के फूल, तुलसी के पत्ते, श्रृंगार की वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। देश में मौजूद तमाम शिव मंदिरों और शिवलिंगों में एक ऐसा शिवलिंग है, जहां भगवान शंकर के हृदय में विष्णु जी विराजमान हैं। इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग का राजा कहा जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव के इस विशेष मंदिर के बारे में विस्तार से जानें...

भगवान लिंगराज मंदिर

भगवान लिंगराज मंदिर ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित है। इसे 12 ज्योतिर्लिंगों के राजा के रूप में जाना जाता है। भगवान लिंगराज यहीं विराजमान हैं। इस मंदिर में महाशिवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके प्रांगण में लगभग 150 छोटे-बड़े मंदिर हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा ययाति प्रथम ने करवाया था। यहाँ विराजमान लिंगराज स्वयंभू हैं। कहा जाता है कि यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ भगवान शिव को बेलपत्र के साथ तुलसी के पत्ते भी चढ़ाए जाते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इस मंदिर में भगवान शिव और भगवान विष्णु एक साथ विराजमान हैं।

लिंगराज के मंदिर और मान्यताएँ

कहा जाता है कि लिंगराज मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में राजा ययाति केसरी ने करवाया था। कहा जाता है कि इस मंदिर में प्रतिदिन लगभग 6 हज़ार लोग दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी भक्त यहाँ आकर भगवान शिव के दर्शन करता है, उसका जीवन सफल हो जाता है। उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। इस मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। हालाँकि, मंदिर के पास एक ऊँचा चबूतरा बनाया गया है, ताकि अन्य धर्मों के लोग भी मंदिर के दर्शन कर सकें।

यह देश का एकमात्र मंदिर है, जहाँ भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा की जाती है। हर साल लाखों लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग ग्रेनाइट पत्थर से बना है। यह मंदिर 150 वर्ग मीटर में फैला है। मंदिर में 40 मीटर की ऊँचाई पर कलश स्थापित किया गया है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में है, जबकि उत्तर और दक्षिण दिशा में अन्य छोटे प्रवेश द्वार हैं।

कुआँ है विशेष आकर्षण का केंद्र

मंदिर के दाहिनी ओर एक छोटा कुआँ है, जो विशेष आकर्षण का केंद्र है। इसे मरीचि कुंड के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहाँ स्नान करने से संतान की प्राप्ति होती है। यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर से होकर एक नदी गुजरती है, जिसका जल मंदिर के बिंदुसर सरोवर में भर जाता है। जो कोई भी इस सरोवर में स्नान करता है, उसके शारीरिक और मानसिक कष्ट और रोग दूर हो जाते हैं। मंदिर से होकर गुजरने वाली नदी का पवित्र जल संतों, भक्तों और साधुओं में वितरित किया जाता है।

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