जहां होता है गणेश जी के द्वादश नाम स्तोत्रम का पाठ, वहां कभी नहीं टिकतीं भूत-प्रेत और पिशाचों की नकारात्मक शक्तियां

भारतीय संस्कृति में गणपति बप्पा का स्थान सबसे ऊपर माना जाता है। उन्हें विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता और मंगलकर्ता के रूप में पूजा जाता है। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी के नाम से होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका एक विशेष स्तोत्र — द्वादश नाम स्तोत्रम — सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि इसे पढ़ने मात्र से नकारात्मक शक्तियों, भूत-प्रेतों, पिशाचों और ऊर्जा के विकृत प्रभावों से मुक्ति मिलती है?लोक मान्यताओं और आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कहा जाता है कि जहां प्रतिदिन श्रद्धा से गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम का पाठ होता है, वहां किसी भी प्रकार की भूतिया, पिशाचिनी या असुरी शक्ति नहीं टिक सकती। वह स्थान स्वतः ही एक रक्षा कवच में ढल जाता है।आखिर क्या है यह द्वादश नाम स्तोत्रम? और कैसे इसमें इतनी अद्भुत शक्ति समाई हुई है? आइए इस अद्भुत स्तोत्र और इसके पीछे छुपे गूढ़ रहस्य को समझते हैं।इन नामों में भगवान गणेश के स्वरूप, उनके कार्य, शक्ति और गुणों का वर्णन छिपा है। मान्यता है कि इन बारह नामों के उच्चारण से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और कोई भी बुरी शक्ति वहां पैर नहीं रख सकती।
भूत-प्रेतों का नाश और ऊर्जाओं का संतुलन
तांत्रिक शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि भूत-प्रेत, पिशाच, शाकिनी-डाकिनी जैसी शक्तियां केवल उन स्थानों पर सक्रिय होती हैं जहां मन की शुद्धता, ध्वनि की पवित्रता और ऊर्जा की दिशा कमजोर होती है। ऐसे स्थानों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए ये शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं।लेकिन जब किसी स्थान पर दिन में एक बार भी गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम का श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाता है, तो वहाँ एक दिव्य ऊर्जा का निर्माण होता है जो इन नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव को समाप्त कर देती है।आध्यात्मिक साधकों का मानना है कि यह स्तोत्र मानसिक बल, आत्मविश्वास और सुरक्षा की ऐसी ढाल बनाता है, जिसे कोई भी अदृश्य नकारात्मक शक्ति भेद नहीं सकती।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: ध्वनि और कंपन की शक्ति
आधुनिक विज्ञान भी अब यह मानता है कि ध्वनि (Sound) और कंपन (Vibration) का हमारे वातावरण और मानसिक स्थिति पर गहरा असर होता है। संस्कृत मंत्रों की ध्वनि-लहरियां ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ती हैं और मानव शरीर की सात चक्रों (energy centers) को संतुलित करती हैं।गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम में प्रयुक्त हर नाम एक विशेष कंपन पैदा करता है जो वातावरण को शुद्ध करता है। यही कारण है कि इन नामों के नियमित पाठ से नकारात्मक ऊर्जाएं निष्क्रिय हो जाती हैं।
मान्यताएं और अनुभव — एक जीवंत सत्य
भारत के कई मंदिरों, आश्रमों और यहां तक कि घरों में भी रोज सुबह यह स्तोत्र पढ़ा जाता है। अनेक घरों में यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। कुछ परिवारों ने साझा किया है कि जब उन्होंने अपने घर में इस स्तोत्र का नियमित पाठ शुरू किया, तो कई प्रकार की समस्याएं — जैसे अशुभ स्वप्न, मानसिक अशांति, बच्चों का डरना, बिजली की बार-बार खराबी आदि — धीरे-धीरे समाप्त हो गईं।कुछ प्राचीन संतों ने तो यहां तक कहा है कि यदि किसी स्थान पर प्रेत बाधा या भय का वातावरण हो, तो वहां 21 दिन तक इस स्तोत्र का पाठ करें — उस स्थान का स्वरूप ही बदल जाएगा।
कैसे करें पाठ — सरल और प्रभावी विधि
सुबह स्नान के बाद शुद्ध और शांत वातावरण में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें।
दीपक और अगरबत्ती जलाकर भगवान गणेश का ध्यान करें।
श्रद्धा और एकाग्रता से 3, 7 या 11 बार द्वादश नाम स्तोत्रम का पाठ करें।
पाठ के बाद प्रार्थना करें: “हे विघ्नहर्ता, इस स्थान को अपनी कृपा से सुरक्षित रखें।”
चाहें तो इसे मोबाइल पर रिकॉर्डिंग से भी सुन सकते हैं, परंतु उच्चारण यदि स्वयं करें तो प्रभाव अधिक होता है।