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जहां देवी करती हैं स्वयं प्रदेश की रक्षा हटते ही मूर्ति आई थी प्रलयंकारी बाढ़, 2 मिनट के वीडियो में देखे इस चमत्कारी मंदिर का इतिहास 

जहां देवी करती हैं स्वयं प्रदेश की रक्षा हटते ही मूर्ति आई थी प्रलयंकारी बाढ़, 2 मिनट के वीडियो में देखे इस चमत्कारी मंदिर का इतिहास 

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, जहां कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। इन्हीं में से एक है धारी देवी मंदिर, जिन्हें राज्य की रक्षक देवी माना जाता है। यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। यहां माता के सिर की पूजा की जाती है, जबकि कालीमठ में उनके धड़ की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दौरान यहां हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। देवी काली को समर्पित इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि यह उत्तराखंड के चारों धामों की रक्षा करती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि इस मंदिर में देवी की मूर्ति दिन में तीन बार रंग बदलती है। ऐसे में आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं…


बाढ़ में बह गई थी मां की मूर्ति, फिर हुआ चमत्कार
मान्यता है कि द्वापर युग में भयंकर बाढ़ आई थी, जिसमें देवी की मूर्ति भी बह गई थी। तैरते हुए यह मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान पर रुक गई। तभी आकाशवाणी हुई कि देवी को इसी स्थान पर स्थापित किया जाए। गांव के लोगों ने वहां मूर्ति स्थापित की और तब से यहां पूजा-अर्चना होती आ रही है। यह मंदिर चारधाम यात्रा मार्ग पर स्थित है, इसलिए इसे चारधामों की रक्षक भी कहा जाता है।

दिन में तीन बार बदलती है देवी का रूप
धारी देवी मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां दिन में तीन बार मां का रूप बदलता है। सुबह के समय देवी कन्या के रूप में प्रकट होती हैं। दोपहर में देवी का रूप युवती का हो जाता है। जबकि शाम के समय देवी वृद्ध महिला के रूप में प्रकट होती हैं। इस अद्भुत चमत्कार को देखने के लिए भक्त सुबह से शाम तक मंदिर में डटे रहते हैं। स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि 2013 में आई भयानक बाढ़ धारी देवी के क्रोध का ही नतीजा थी। 16 जून 2013 को मंदिर की मूर्ति को उसके पूर्व स्थान से हटा दिया गया और उसी शाम उत्तराखंड में भयानक बाढ़ आ गई। इस बाढ़ में हजारों लोगों की जान चली गई। कहा जाता है कि मां को चिढ़ाना अशुभ होता है और उनकी मूर्ति को हटाने का नतीजा पूरी दुनिया ने देखा। धारी देवी और कालीमठ का गहरा संबंध
धारी देवी मंदिर में माता काली के सिर की पूजा की जाती है, जबकि कालीमठ में उनके धड़ की पूजा की जाती है। ये दोनों मंदिर मां काली को समर्पित हैं। कालीमठ को तंत्र साधना का बड़ा केंद्र माना जाता है, जबकि धारी देवी को चारों धामों की संरक्षक देवी माना जाता है।

सुबह 6 बजे खुलते हैं पट, शाम 7 बजे होती है आरती
धारी देवी मंदिर में सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक दर्शन किए जा सकते हैं। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु मां का आशीर्वाद लेने आते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां भारी भीड़ उमड़ती है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने पर मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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