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जब कैलाश छोड़ने के बाद भी शनिदेव की दृष्टि से नहीं बच पाए महाकाल, वीडियो में जाने वो कथा जब शिव को भी सहना पड़ा शनिकाल का प्रभाव

जब कैलाश छोड़ने के बाद भी शनिदेव की दृष्टि से नहीं बच पाए महाकाल, वीडियो में जाने वो कथा जब शिव को भी सहना पड़ा शनिकाल का प्रभाव

भारतीय ज्योतिष और पुराणों में शनि देव को न्याय का देवता माना गया है, जो कर्म के अनुसार फल प्रदान करते हैं। वे नवग्रहों में सबसे अधिक feared और respected माने जाते हैं क्योंकि उनकी वक्र दृष्टि राजा को रंक और रंक को राजा बना सकती है। लेकिन एक बार शनि देव की यह वक्र दृष्टि उनके ही गुरु भगवान शिव पर पड़ गई थी। यह घटना इतनी रहस्यमयी और चौंकाने वाली है कि खुद कैलाशपति शिवजी को भी धरती पर भटकना पड़ा। आइए जानते हैं इस अनसुनी पौराणिक कथा के पीछे की पूरी कहानी।


शनि देव की न्यायप्रियता और वक्र दृष्टि
शनि देव का जन्म भगवान सूर्य और छाया (संवर्णा) से हुआ था। वे तपस्वी, गंभीर और कठोर स्वभाव के माने जाते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य जीवों को उनके कर्मों के अनुसार फल देना है। अगर कोई अधर्म करता है या अहंकार करता है, तो शनि देव की वक्र दृष्टि उसे संतुलित करती है। परंतु जब यही दृष्टि भगवान शिव पर पड़ी, तो जो घटा वह आज भी लोगों को सोचने पर मजबूर करता है।

जब भगवान शिव बने शनि की वक्र दृष्टि के शिकार
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सभी ग्रहों को अपनी शक्तियों का बोध हो गया। प्रत्येक ग्रह ने अपने प्रभाव को प्रदर्शित करना शुरू किया। शनि देव ने कहा, "मेरी दृष्टि में इतना बल है कि अगर वह किसी पर पड़ जाए, तो उसका जीवन उलट-पुलट हो सकता है।" सभी देवता मुस्कुरा दिए, लेकिन भगवान शिव ने कहा, "यदि तुम इतने सामर्थ्यवान हो, तो मेरी परीक्षा लो।"शनि देव ने निवेदन किया, "प्रभु, मैं आपकी आज्ञा से एक पल के लिए आप पर अपनी दृष्टि डालता हूँ।" भगवान शिव ने स्वीकृति दी। शनि देव ने जैसे ही अपनी दृष्टि शिव पर डाली, उसी क्षण से शिवजी को कैलाश छोड़कर पृथ्वी पर विचरण करना पड़ा।

धरती पर शिवजी का विचरण
कहते हैं कि शनि की दृष्टि के प्रभाव से भगवान शिव को अनेक स्थानों पर जाना पड़ा, वे साधारण मानव के रूप में भटकते रहे। वे न तो ध्यान लगा सके, न ही समाधि में बैठ सके। हर स्थान पर उन्हें कोई न कोई कष्ट या बाधा आ रही थी।वे कभी श्मशान में रुकते, कभी निर्जन वन में। उन्होंने कई स्थानों पर तपस्या का प्रयास किया लेकिन स्थिर न रह सके। यह स्थिति कई वर्षों तक चली। यह देखकर देवी पार्वती अत्यंत चिंतित हो उठीं और उन्होंने भगवान विष्णु से मार्गदर्शन मांगा।

शनि देव को मिला बोध
जब शनिदेव को ज्ञात हुआ कि उनकी दृष्टि के कारण स्वयं भगवान शिव को कष्ट हुआ है, तो वे तुरंत उनके चरणों में गिर पड़े और क्षमा याचना की। शनि देव ने कहा, “प्रभु, मेरी दृष्टि का उद्देश्य किसी को कष्ट देना नहीं था, मैं तो केवल सत्य और न्याय का पालन करता हूँ।”शिवजी मुस्कुराए और बोले, “हे शनि, यह तो तुम्हारी शक्ति का प्रमाण है। तुम अपने मार्ग पर अडिग रहो, लेकिन यह भी ध्यान रखो कि जिन पर तुम्हारी दृष्टि पड़े, उनके लिए भी सहानुभूति और संयम आवश्यक है।”

इस कथा का आध्यात्मिक संदेश
इस पूरी घटना का गहरा आध्यात्मिक अर्थ है। चाहे कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, जब कर्मों का प्रभाव आता है, तो उसे झुकना ही पड़ता है। भगवान शिव स्वयं इस दृष्टि का अनुभव करते हैं, तो सामान्य मानव के लिए यह चेतावनी है कि अहंकार और अधर्म से बचें।शनि की दृष्टि केवल दंड नहीं, बल्कि आत्मबोध का अवसर भी है। वह जीवन में संयम, साधना और सत्य की ओर मोड़ने वाला एक अदृश्य मार्गदर्शक बन जाती है।

आज भी होता है स्मरण
आज भी जब लोग शनि के साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव से गुजरते हैं, तो शिवजी की आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई शनिवार को भगवान शिव और शनि दोनों की आराधना करे, तो कष्ट टल जाते हैं। साथ ही यह कथा याद दिलाती है कि शनिदेव को क्रोध नहीं, करुणा और क्षमा से भी जीता जा सकता है।

जब खुद भोलेनाथ को शनि की दृष्टि का प्रभाव सहना पड़ा, तो ये हमें सिखाता है कि ब्रह्मांड में कर्म और न्याय का संतुलन सर्वोपरि है। यह कथा न केवल पौराणिक महत्व रखती है, बल्कि वर्तमान जीवन में भी अनुशासन, सहिष्णुता और आस्था का संदेश देती है।यदि आप भी शनि की दृष्टि से प्रभावित हैं, तो शिवजी की पूजा, संयमित जीवन और सकारात्मक कर्मों के माध्यम से जीवन में संतुलन पा सकते हैं।

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