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वायरल वीडियो में देखिये शिव पंचाक्षर स्तोत्र की पौराणिक कथा, कैसे “नमः शिवाय” बना मोक्ष का महामंत्र और शिव भक्ति का आधार

वायरल वीडियो में देखिये शिव पंचाक्षर स्तोत्र की पौराणिक कथा, कैसे “नमः शिवाय” बना मोक्ष का महामंत्र और शिव भक्ति का आधार

हिंदू धर्म में भगवान शिव को संहारक नहीं, बल्कि कल्याणकारी देवता के रूप में पूजा जाता है। वे न केवल भक्तों के कष्ट हरने वाले हैं, बल्कि उन्हें आध्यात्मिक शक्ति और शांति भी प्रदान करते हैं। शिव की स्तुति के लिए कई मंत्र और स्तोत्र मौजूद हैं, लेकिन शिव पंचाक्षर स्तोत्र का स्थान इनमें सर्वोच्च है। यह स्तोत्र भगवान शिव के पांच अक्षरों वाले पवित्र मंत्र "नमः शिवाय" पर आधारित है। यह मंत्र जितना सरल लगता है, उतना ही गूढ़ और प्रभावशाली भी है। इसके पीछे एक अत्यंत रोचक और पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है, जो इसे और भी अधिक दिव्य बना देती है।


पंचाक्षर स्तोत्र की रचना और महत्व
"न-मः-शि-वा-य" – ये पाँच अक्षर मिलकर बनाते हैं पंचाक्षर मंत्र, जिसका अर्थ है "मैं शिव को नमन करता हूँ।" यह पंचाक्षर मंत्र केवल एक जप नहीं, बल्कि आत्मा के परमात्मा से मिलने की कुंजी माना गया है। इस मंत्र पर आधारित शिव पंचाक्षर स्तोत्र की रचना स्वयं महाकवि कालिदास द्वारा की गई थी, जो संस्कृत साहित्य में अमर काव्यशिल्पी माने जाते हैं।कहा जाता है कि इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में एक-एक अक्षर की महिमा का वर्णन किया गया है, जो साधक को आध्यात्मिक ऊँचाइयों की ओर ले जाता है। यह स्तोत्र भगवान शिव के रूप, गुण और उनकी कृपा को समर्पित है।

शिव पंचाक्षर स्तोत्र से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, एक समय ऐसा था जब सृष्टि के संतुलन के लिए तीनों प्रमुख देवताओं—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—में समन्वय की आवश्यकता थी। ब्रह्मा सृजनकर्ता थे, विष्णु पालनकर्ता और शिव संहारक। लेकिन शिव को केवल संहार से जोड़कर देखा जाने लगा था, जिससे आमजन भयभीत रहते थे।देवताओं की सभा में यह चिंता प्रकट की गई कि शिव को केवल रौद्र रूप में देखा जाना अनुचित है, जबकि वे करुणा, कल्याण और ध्यान के भी अधिपति हैं। तब नारद मुनि ने सुझाव दिया कि शिव की महिमा का प्रचार एक ऐसे मंत्र के माध्यम से हो जो सरल हो, परन्तु अत्यंत शक्तिशाली भी हो।

नारद मुनि ने स्वयं हिमालय पर तप करके "नमः शिवाय" मंत्र की साधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि यह पंचाक्षर मंत्र केवल मुक्ति ही नहीं, बल्कि भक्त को भौतिक जीवन में भी उन्नति और रक्षा प्रदान करेगा।इसके बाद, इस मंत्र के आधार पर महाकवि कालिदास ने शिव पंचाक्षर स्तोत्र की रचना की, जो ना केवल भक्ति का अद्वितीय उदाहरण बना, बल्कि शिव की साकार और निराकार दोनों स्वरूपों की स्तुति का मार्ग भी बना।

पंचाक्षर स्तोत्र का प्रभाव और लाभ
शिव पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मनुष्य के भीतर आत्मबल, शांति, और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा की शक्ति उत्पन्न होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से सोमवार, महाशिवरात्रि और श्रावण मास के दौरान अत्यधिक फलदायी माना जाता है।

आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता
आज के समय में जब व्यक्ति तनाव, चिंता, और भटकाव से ग्रस्त है, शिव पंचाक्षर स्तोत्र एक ऐसा साधन है जो न केवल मन को स्थिर करता है बल्कि आत्मा को भीतर से जाग्रत करता है। मोबाइल ऐप्स और डिजिटल माध्यमों के जरिए भी यह स्तोत्र अब अधिक लोगों तक पहुँच रहा है, जिससे नई पीढ़ी भी शिव की भक्ति से जुड़ रही है।

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