वीडियो में देखे भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार की पौराणिक कथा, जानें कैसे हुआ धरती पर उनका चमत्कारी जन्म ?
सनातन धर्म की गहराइयों में अनेक रहस्यमयी और आध्यात्मिक कथाएं समाई हुई हैं, जो न केवल धर्म, आस्था और श्रद्धा से जुड़ी हैं, बल्कि ब्रह्मांडीय शक्तियों के अद्भुत खेल को भी दर्शाती हैं। इन्हीं दिव्य कथाओं में एक अत्यंत प्रभावशाली प्रसंग है भगवान हनुमान जी के जन्म का। बहुत कम लोग जानते हैं कि हनुमान जी केवल एक वानर योद्धा नहीं थे, बल्कि स्वयं भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार माने जाते हैं। यह तथ्य उन्हें अन्य सभी देवताओं से अलग और अद्वितीय बनाता है।
भगवान शिव का रुद्र स्वरूप
हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है कि भगवान शिव जब रुद्र रूप में प्रकट होते हैं, तो उनका उद्देश्य होता है सृष्टि के संतुलन को बनाए रखना। उनके कुल 11 रुद्र रूप माने गए हैं, जिनमें से अंतिम और सबसे प्रभावशाली रूप माने जाते हैं श्री हनुमान जी। उनके इस रूप में जन्म लेने के पीछे एक गहरी पौराणिक कथा है, जो त्रेता युग से जुड़ी हुई है।
हनुमान जी के जन्म की पौराणिक कथा
हनुमान जी के जन्म की कथा रामायण, शिवपुराण और कई अन्य ग्रंथों में विस्तार से मिलती है। त्रेता युग में जब रावण के अत्याचारों से धरती त्रस्त थी, तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे अवतार लेकर रावण का विनाश करें। भगवान विष्णु ने श्रीराम रूप में जन्म लेने का संकल्प लिया, लेकिन रावण को परास्त करने के लिए उन्हें ऐसे अद्वितीय सहयोगी की आवश्यकता थी, जो अमर हो, बलशाली हो और बुद्धिमान भी।तभी देवताओं की सभा में भगवान शिव ने यह घोषणा की कि वे स्वयं एक अवतार लेंगे जो श्रीराम की सेवा में सदैव तत्पर रहेगा। भगवान शिव ने अपने अंश से एक तेज उत्पन्न किया और उसे वायु देव को सौंप दिया। वायु देव ने उस तेज को अंजना नामक वानरी के गर्भ में स्थापित किया, जो स्वयं एक अप्सरा थीं और शापवश वानरी रूप में पृथ्वी पर आई थीं। इस प्रकार हनुमान जी का जन्म हुआ।
अंजनी पुत्र हनुमान और वायु देव का योगदान
हनुमान जी को 'अंजनीपुत्र' के नाम से भी जाना जाता है। उनकी माता अंजना और पिता केसरी थे, परंतु उन्हें वायु पुत्र भी कहा जाता है, क्योंकि उनके जन्म में वायु देव का विशेष योगदान था। वायु देव ने न केवल उन्हें जीवन दिया, बल्कि उनमें अपार बल, गति और ऊर्जा भी संचारित की। यही कारण है कि हनुमान जी में अतुलनीय बल, असीम गति और अद्भुत क्षमता देखने को मिलती है।
रामभक्त हनुमान: भक्ति और वीरता का प्रतीक
हनुमान जी के जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य श्रीराम की सेवा करना था। उन्होंने बाल्यकाल में ही सूर्य देव को फल समझकर निगल लिया, जिससे तीनों लोकों में अंधकार छा गया था। उनके गुरु सूर्य देव से ज्ञान प्राप्त कर, उन्होंने श्रीराम की सेवा में जीवन समर्पित कर दिया। चाहे वह सीता माता की खोज हो, या लंका दहन, संजीवनी बूटी लाना हो या लक्ष्मण की रक्षा — हर कार्य में हनुमान जी ने असंभव को संभव कर दिखाया।
निष्कलंक और चिरंजीवी हनुमान
हनुमान जी को 'अजर-अमर' माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि वे आज भी जीवित हैं और जहां श्रीराम का नाम लिया जाता है, वहां वे अदृश्य रूप में उपस्थित रहते हैं। उनका चरित्र न केवल बल और वीरता का प्रतीक है, बल्कि नि:स्वार्थ भक्ति, सेवा और समर्पण की भी मिसाल है।

