Samachar Nama
×

बिन इस मंदिर के दर्शन अधूरी है वैष्णो देवी यात्रा, वायरल फुटेज में जानिए कौन-सा है वो स्थल और क्या है इसका पौराणिक महत्व

बिन इस मंदिर के दर्शन अधूरी है वैष्णो देवी यात्रा, वायरल फुटेज में जानिए कौन-सा है वो स्थल और क्या है इसका पौराणिक महत्व

जम्मू-कश्मीर के कटरा शहर में स्थित मां वैष्णो देवी का मंदिर प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। हर साल लाखों श्रद्धालु मां वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए त्रिकूट पर्वत पर आते हैं। यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को करीब 14 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। आपको बता दें कि इस पर्वत को त्रिकूट भी कहा जाता है क्योंकि माता की पूजा त्रिकूट के नाम से की जाती है। इस यात्रा के दौरान बाणगंगा और अर्धकुंवारी मंदिर जैसे महत्वपूर्ण स्थान भी आते हैं। हिंदू धर्म में इन मंदिरों का विशेष धार्मिक महत्व है, खासकर अर्धकुंवारी मंदिर का। मान्यता है कि माता वैष्णो देवी के दर्शन करने वाले श्रद्धालु अर्धकुंवारी मंदिर के दर्शन भी जरूर करते हैं। आइए जानते हैं इससे जुड़ी प्रचलित मान्यताएं।


जानिए अर्धकुंवारी मंदिर की धार्मिक मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अर्धकुंवारी मंदिर में माता ने 9 महीने तक तपस्या की थी। अर्धकुंवारी मंदिर को गर्भजून गुफा के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि जो भी भक्त इस गुफा के दर्शन करता है उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। गुफा दिखने में छोटी है, लेकिन हर तरह का व्यक्ति बिना किसी परेशानी के यहां से गुजर सकता है। मान्यता है कि इस गुफा के दर्शन करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

अर्धकुंवारी मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
मां वैष्णो देवी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में श्रीधर नाम का भक्त रहता था, जो दिन-रात माता की भक्ति में लीन रहता था। एक दिन माता ने कन्या रूप में उसे दर्शन दिए और उसे एक भव्य भोज का आयोजन करने को कहा। माता के आशीर्वाद से श्रीधर ने भोज का आयोजन किया, जिसमें भैरव नाथ को भी आमंत्रित किया। भैरव नाथ ने भोज में मांस और मदिरा की मांग की, जो वैष्णव परंपरा के खिलाफ था। जब कन्या रूपी मां ने उसे मना कर दिया, तो भैरव नाथ क्रोधित हो गया और माता को पकड़ने की कोशिश की। तब मां ने अपना रूप बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर प्रस्थान किया। मान्यता है कि उस समय माता वैष्णो की रक्षा के लिए हनुमान जी भी वहां मौजूद थे। इसी बीच हनुमान जी को प्यास लगी तो मां ने अपने धनुष-बाण से पहाड़ में जल की धारा प्रवाहित कर दी, जो बाद में बाणगंगा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके बाद मां तपस्या करने एक गुफा में चली गईं।

भैरव नाथ का वध
जब भैरव नाथ ने मां का पीछा करते हुए गुफा तक पहुंचने की कोशिश की तो मां ने उसका वध कर दिया। मरने से पहले भैरव नाथ ने अपनी गलती की माफी मांगी और मां ने उसे आशीर्वाद दिया कि अब जब भी कोई भक्त मेरे दर्शन करेगा तो उसे भैरव नाथ के मंदिर भी जाना होगा, क्योंकि उनके दर्शन के बिना मां के दर्शन अधूरे माने जाएंगे। कहा जाता है कि अर्धकुंवारी मंदिर और भैरव नाथ के दर्शन करने से भक्तों को जीवन में शांति और मां का आशीर्वाद मिलता है।

Share this story

Tags