हनुमान जी, तुलसीदास और रामकथा से जुड़ा राजस्थान का यह अनोखा मंदिर, वीडियो में देखे 500 सालों से जलती आ रही अखंड ज्योति का रहस्य

आज हम आपको जयपुर में स्थित गलताजी का रहस्य बताएंगे। दरअसल गलताजी का भगवान श्री राम से गहरा नाता है। कहा जाता है कि चार शताब्दी पहले तुलसीदास स्वयं यहां आए थे और उन्होंने यहां रामचरित मानस की नींव रखी थी। राम किस तरह वन गए और भरत मिलाप कैसे हुआ, ये सारी घटनाएं यहां लिखी गई हैं। इतना ही नहीं गलताजी की स्थापना जयपुर बनने से भी पहले हो चुकी थी और करीब 5 शताब्दियों से यहां अखंड ज्योति जल रही है।
हनुमान जी का भी गलताजी से है गहरा नाता
गलताजी को बंदरों का मंदिर भी कहा जाता है, दरअसल पवनपुत्र हनुमान का भी इस मंदिर से गहरा नाता है। यहां आपको बड़ी संख्या में बंदर मिल जाएंगे जो यहां आने वाले किसी भी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाते। हनुमान जी के आह्वान पर यहां अखंड ज्योत की स्थापना की गई थी।
18वीं शताब्दी में हुई थी गलताजी की स्थापना
गलताजी की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई थी। गलताजी का मंदिर अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थापित किया गया था। दरअसल इसे गालव ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है। मंदिर का निर्माण रामानंदी संप्रदाय के लोगों ने करवाया था। दिन निकलते ही सूर्य की पहली किरण यहीं पड़ती है। इस मंदिर में तुलसीदास जी ने अयोध्याकांड भी लिखा था। राम चरित मानस की प्रमुख घटनाएं लिखी गईं, जिसमें भगवान श्री राम के वनवास से लेकर भरत मिलाप तक की घटनाएं लिखी गईं। जानकारों का कहना है कि तुलसीदास जी ने यहां पूरे तीन साल बिताए और इसी दौरान अयोध्याकांड लिखा।
बलुआ पत्थर से हुआ था गलता जी का निर्माण
गलता जी का निर्माण 400 साल पहले बलुआ पत्थर से हुआ था। इन पत्थरों का रंग गुलाबी है। यही वजह है कि झरनों से घिरे होने के साथ-साथ गुलाबी पत्थरों से निर्मित होने के बाद यह मंदिर दूर से ही श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मंदिर के निर्माण में वास्तुकला का भी ध्यान रखा गया है। मंदिर देखने में महल जैसा लगता है। मंदिर के निर्माण का कार्य दीवान राव कृपाराम ने करवाया था, जो जय सिंह द्वितीय के दरबार में दरबारी थे। वे रामानंदी संप्रदाय से ताल्लुक रखते थे।
गलताजी में क्या है खास
मंदिर के अलावा गलताजी मंदिर में अखंड ज्योति, पवित्र तालाब, मंडप, प्राकृतिक झरने के साथ कई औषधियां पाई जाती हैं। धार्मिक महत्व के अलावा इस स्थान को औषधीय महत्व का भी माना जाता है।
संत गालव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान हुए थे प्रकट
कहते हैं कि संत गालव ने यहां करीब 100 साल तक भगवान श्री राम की घोर तपस्या की थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन यहीं बिताया और यहीं लीन हो गए। हालांकि, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान स्वयं वहां प्रकट हुए और संत गालव को आशीर्वाद दिया।
कृष्ण के रूप में राम
इस मंदिर की एक और खासियत यह है कि यहां राम कृष्ण के रूप में नजर आते हैं। दरअसल, यहां राम के हाथों में धनुष के साथ-साथ बांसुरी भी नजर आती है। यानी भक्तों को एक ही अवतार में दोनों रूप देखने को मिलते हैं। गलताजी मंदिर के अलावा दुनिया के किसी और मंदिर में ऐसी मूर्ति नहीं है।
अश्वमेघ यज्ञ में रखी गई सीता की स्वर्ण प्रतिमा भी यहां मौजूद है
गलताजी में जहां राम कृष्ण के रूप में विराजमान हैं, वहीं सीता के रूप में उनके पास रखी गई स्वर्ण प्रतिमा का भी अपना इतिहास है। जानकारों का कहना है कि यह वही प्रतिमा है, जिसे भगवान श्रीराम ने सतयुग में अश्वमेघ यज्ञ के दौरान अपने पास रखा था।
शिलाजीत समेत कई औषधियों की खान
अरवलदी पर्वत पर स्थित इस मंदिर के कारण यहां जड़ी-बूटियों का खजाना भी मिलता है। खास तौर पर पहाड़ की चट्टानों के बीच से शिलाजीत बहता रहता है। दरअसल आयुर्वेद में शिलाजीत का इस्तेमाल कई औषधियों में किया जाता है। इसे सेहत के लिए भी अच्छा माना जाता है। इसके अलावा शतावरी, चीरमी, नीम, वज्रदंती, गांधारी, कलिजारी और सालार जैसी कई अन्य औषधियां यहां मुख्य रूप से पाई जाती हैं।
पाताल लोक से भी संबंध
कहा जाता है कि गलताजी में पयोहारी गुफा भी है। इस गुफा का नाम पयोहारी ऋषि के नाम पर पड़ा है। पयोहारी ऋषि यहां तपस्या किया करते थे। हालांकि, जो भी इस गुफा में गया, वह कभी वापस नहीं लौटा। इतना ही नहीं, ऐसा भी कहा जाता है कि इस पयोहारी गुफा का रास्ता सीधे पाताल लोक की ओर जाता है। लोगों के लापता होने के बाद इस गुफा को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है।