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इस बार जन्माष्टमी पर वृन्दावन घूमने का है प्लान तो जरूर करे इन मंदिरों के दर्शन, ताकि अधूरी ना रह जाए आपकी यात्रा 

इस बार जन्माष्टमी पर वृन्दावन घूमने का है प्लान तो जरूर करे इन मंदिरों के दर्शन, ताकि अधूरी ना रह जाए आपकी यात्रा 

लोगों ने जन्माष्टमी की तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। हर साल की तरह इस बार भी जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाएगी। एक घर के लिए और एक मंदिरों के लिए। हर साल जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के दिन मनाई जाती है। इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 15 और 16 अगस्त को होगी। कई लोग घर पर रहकर ही झांकियाँ सजाकर इस दिन को मनाएँगे। वहीं, कुछ लोग मंदिरों में जाकर कान्हा की पूजा करने की योजना बना रहे होंगे। कई लोग कृष्ण जन्मस्थान पर जन्माष्टमी मनाने के लिए एक महीने पहले से ही मथुरा-वृंदावन के लिए टिकट भी बुक कर लेते हैं। वहीं, कुछ लोग 1-2 दिन का प्लान बनाकर यहाँ आते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वृंदावन की यात्रा यहाँ के कुछ मंदिरों के दर्शन किए बिना अधूरी मानी जाती है।

वृंदावन के प्रसिद्ध मंदिर

दरअसल, वृंदावन में कई ऐसे मंदिर हैं जहाँ हर कोई नहीं जा सकता। वृंदावन की यात्रा इन मंदिरों के दर्शन के बाद ही पूरी मानी जाती है। कई लोगों को इन मंदिरों के नाम भी नहीं पता होंगे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, वृंदावन की यात्रा तभी पूरी होती है जब यहाँ कुछ खास मंदिरों के दर्शन किए जाएँ। मान्यता है कि वृंदावन में विश्राम घाट और द्वारकाधीश के दर्शन करने चाहिए और फिर कृष्ण जन्मभूमि के दर्शन करने चाहिए। यहाँ दर्शन करने के बाद ठीक उसके पीछे एक मंदिर है, आदिकेशव का मंदिर, इसलिए यहाँ दर्शन अवश्य करने चाहिए।

सप्त देवालय क्या है?

दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि वृंदावन एक परिक्रमा के बीच में बना है। ये पाँच कोस के भीतर आते हैं। इन पाँच कोस के बीच के सभी मंदिरों को सप्त देवालय कहा जाता है। इस कोस में गोविंददेवजी, गोपीनाथ, मदन मोहन, श्याम सुंदर, गोकुलानंद, श्री दामोदर जी और श्री राधारमण जी, श्री राधावल्लभ जी, श्री बांकेबिहारी जी और श्री जुगलबिहारी जी के मंदिर हैं। हो सके तो इन दर्शनों के बाद ही वृंदावन से लौटना चाहिए। तभी वृंदावन की यात्रा पूरी मानी जाती है। अगर एक बार में यह संभव न हो, तो अगली यात्रा में भी इन मंदिरों के दर्शन पूरे किए जा सकते हैं।

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