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जयपुर में स्थित है गणपति बप्पा का ये सदियों पुराना मंदिर जहाँ होती है दाहिने सूंड वाले गणपति की पूजा, वीडियो में अनोखी मान्यताएं जान रह जायेंगे दंग 

जयपुर में स्थित है गणपति बप्पा का ये सदियों पुराना मंदिर जहाँ होती है दाहिने सूंड वाले गणपति की पूजा, वीडियो में यहां की अनोखी मान्यताएं जान रह जायेंगे दंग 

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से गणेश उत्सव की शुरुआत होगी। इस वर्ष गणेश चतुर्थी 27 अगस्त, बुधवार को है। देश में विघ्न विनाशक के कई मंदिर हैं, जो उनसे जुड़े चमत्कारों का बखान करते हैं। राजस्थान के 'गुलाबी नगर' जयपुर में भी एक ऐसा ही अनोखा मंदिर है, जहाँ मोती की बूंद जैसी दिखने वाली पहाड़ी पर दाहिनी सूंड वाले गणपति विराजमान हैं।

मंदिर मोती की बूंद जैसी दिखने वाली पहाड़ी पर है

जयपुर अपनी समृद्ध संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस शहर का मोती डूंगरी गणेश मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण के प्रमुख केंद्रों में से एक है। मोती की बूंद जैसी दिखने वाली पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर दाहिनी सूंड वाले भगवान गणेश की प्राचीन मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस मंदिर में भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है और विघ्नों का भी नाश होता है। गणेश उत्सव के अवसर पर मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।

18वीं शताब्दी में बना था गणेश मंदिर

राजस्थान पर्यटन विभाग के अनुसार, जयपुर स्थित मोती डूंगरी गणेश मंदिर एक पवित्र और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है, जिसे मोती डूंगरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह मोती की एक बूंद के समान दिखाई देती है। जयपुर शहर इसी पहाड़ी के चारों ओर बसा है। इस मंदिर का निर्माण सेठ जय राम पालीवाल ने 18वीं शताब्दी में करवाया था।

मोती डूंगरी गणेश मंदिर की कहानी

इस मंदिर के बारे में एक रोचक कहानी भी प्रचलित है। किंवदंती है कि मेवाड़ के राजा लंबी यात्रा के बाद बैलगाड़ी में गणेश जी की एक विशाल मूर्ति लेकर लौट रहे थे। उन्होंने निश्चय किया कि जहाँ भी बैलगाड़ी रुकेगी, वहाँ मंदिर बनवाएँगे। बैलगाड़ी मोती डूंगरी के पास रुकी और 1761 में यहाँ इस भव्य मंदिर की स्थापना की गई। माना जाता है कि यह मूर्ति लगभग 500 वर्ष पुरानी है, मूर्ति को मावली से उदयपुर और फिर जयपुर लाया गया था।

नागर शैली का संगमरमर मंदिर
मोती डूंगरी गणेश मंदिर की संरचना और डिज़ाइन नागर शैली में है, जो उत्तर भारत की पारंपरिक मंदिर वास्तुकला है। साथ ही, इसका डिज़ाइन स्कॉटिश महलों से प्रेरित है, जो इसे अद्वितीय बनाता है। मंदिर में तीन प्रवेश द्वार और सामने कुछ सीढ़ियाँ हैं, जो भक्तों को गणेश जी की मूर्ति तक ले जाती हैं। यह चूना पत्थर और संगमरमर से निर्मित है।

हर बुधवार को मेला लगता है
भगवान गणेश की मूर्ति दाहिनी सूंड की है, जिसे बहुत शुभ माना जाता है। यहाँ हर बुधवार को मेला लगता है और गणेश चतुर्थी जैसे त्योहारों पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होने वाली गणेश चतुर्थी मोती डूंगरी मंदिर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस दौरान मंदिर को फूलों, रोशनी और झांकियों से सजाया जाता है। गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दिवाली और अन्य त्योहारों पर यहाँ विशेष आयोजन होते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में भक्त भाग लेते हैं।

गणपति ने पहनाया सोने का मुकुट और नौ लाख का हार
भगवान गणेश को सोने का मुकुट और नौ लाख का हार पहनाया जाता है, और उनका पंचामृत अभिषेक भी किया जाता है। मंदिर में भगवान की मेहंदी लगाकर पूजा की जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह मेहंदी उन लोगों के लिए वरदान है जिनकी शादी में बाधाएं आ रही हैं।

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