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वो मंदिर जिसकी चमक से जल उठा था औरंगजेब! हमला कर छीन लिए थे खजाने और अनमोल रत्न, वीडियो में जाने अनसुनी कहानी 

वो मंदिर जिसकी चमक से जल उठा था औरंगजेब! हमला कर छीन लिए थे खजाने और अनमोल रत्न, वीडियो में जाने अनसुनी कहानी 

मथुरा के वृंदावन में स्थित रहस्यमयी मंदिर, जिसे 'गोविंद देव (भूत) मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है, अपनी अनोखी कहानी के लिए आज भी चर्चा में है। इस मंदिर को 'सात मंजिला मंदिर' कहा जाता था और कभी इसकी भव्यता इतनी थी कि इसे आगरा और दिल्ली से भी देखा जा सकता था। कहा जाता है कि जब मुगल आक्रमणकारी औरंगजेब ने अपने महल से इस मंदिर की ऊँची इमारत देखी, तो वह हैरान रह गया। कहा जाता है कि मंदिर के कमल के आकार में लगभग 200 हीरे और पन्ने जड़े हुए थे। मंदिर इतना चमकता था कि उसकी रोशनी मीलों दूर तक दिखाई देती थी। लेकिन औरंगजेब ने इस मंदिर पर हमला किया, करोड़ों रुपये के कीमती हीरे लूट लिए और इस ऐतिहासिक धरोहर को काफी हद तक नष्ट कर दिया।

मंदिर से जुड़ी रोचक मान्यता.. भूतों ने बनवाया था मंदिर

स्थानीय लोगों में एक रोचक मान्यता प्रचलित है कि इस मंदिर का निर्माण भूतों ने किया था। कहा जाता है कि जब भूत इस मंदिर का निर्माण कर रहे थे, तो अचानक आटा चक्की की आवाज सुनाई दी। इस आवाज़ से डरकर भूत-प्रेत मंदिर का निर्माण अधूरा छोड़ गए। यही वजह है कि यह मंदिर आज तक अधूरा ही खड़ा है, बस उतना ही निर्माण बचा है जितना भूतों ने किया था।

मंदिर की प्राचीन मूर्ति कहाँ गई?

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान कृष्ण की एक प्राचीन मूर्ति स्थापित थी, लेकिन मुगलों के आक्रमण के दौरान पुजारी मूर्ति को बचाने के लिए जयपुर ले गए। आज यह प्राचीन मूर्ति जयपुर के प्रसिद्ध गोविंद देव जी मंदिर में विराजमान है, जहाँ प्रतिदिन भक्त दर्शन के लिए पहुँचते हैं।

गोविंद देव मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
वृंदावन स्थित गोविंद देव मंदिर का इतिहास बहुत पुराना और गौरवशाली रहा है। कहा जाता है कि 1525 में श्री रूप गोस्वामी ने जंगल में भगवान कृष्ण की मूर्ति की खोज की थी। इसके बाद 1585 में राजा मान सिंह ने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया, जो लाल बलुआ पत्थर से बना था। इस मंदिर की खास बात यह थी कि इसमें हिंदू और मुस्लिम वास्तुकला का अनूठा मिश्रण है। लेकिन बाद में मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया। इसके बाद जयपुर के राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने गोविंद देव जी की मूर्ति को जयपुर स्थानांतरित कर दिया, जहाँ यह आज भी विराजमान है। वर्तमान में वृंदावन स्थित यह मंदिर आंशिक रूप से ही खड़ा है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व आज भी बना हुआ है।

मंदिर में आज भी धार्मिक अनुष्ठान होते हैं

भले ही यह मंदिर अब अधूरा है, फिर भी यहाँ पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान आज भी होते हैं। खास बात यह है कि सूर्योदय से पहले मंगला आरती और दर्शन की परंपरा आज भी निभाई जाती है। यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास और रहस्यों में रुचि रखने वालों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

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