खीर गंगा की कहानी! क्यों मानी जाती है उत्तरकाशी की सबसे खतरनाक नदी ? जानिए इसके नाम के पीछे की पूरी कहानी
उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ी इलाके में स्थित धराली गांव इन दिनों खौफ के साये में है। 5 अगस्त को उत्तरकाशी जिले के इस गांव में बादल फटने और भूस्खलन ने तबाही मचा दी थी. खीर गंगा नदी उफान पर आ गई और अपने रास्ते में आने वाले सभी घरों, दुकानों, होटलों को बहा ले गई। कई लोग इसकी चपेट में भी आए। इस घटना के कारण धराली जाने वाला रास्ता पूरी तरह से बंद हो गया है. इस कारण यहां फंसे लोगों तक मदद पहुंचाना काफी मुश्किल हो गया है। इस समय मदद पहुंचाने का एकमात्र जरिया हेलीकॉप्टर ही है. इस तबाही ने पूरे इलाके को हिलाकर रख दिया है स्थानीय लोग इस नदी के अचानक उफान से काफी डरे हुए हैं. ऐसे में आइए जानते हैं धराली में तबाही का सैलाब लाने वाली खीर गंगा नदी का इतिहास और इसके नाम की कहानी...
धराली में अभी क्या हो रहा है
प्रशासन और बचाव दलों का बचाव अभियान जारी है। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ समेत पुलिस-सेना के जवान लगातार लगे हुए हैं, ताकि फंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके। प्रभावित इलाकों में राहत सामग्री पहुँचाने का काम भी तेज़ी से चल रहा है। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया जा रहा है और उनके खाने-पीने का भी इंतज़ाम किया जा रहा है। धराली में सड़क अभी भी बंद है, जिससे वहाँ हालात पूरी तरह सामान्य नहीं हो पाए हैं। बारिश के कारण मलबा हटाने और सड़क खोलने का काम धीरे-धीरे चल रहा है। स्थानीय लोग और प्रशासन, दोनों ही चिंतित हैं कि नदी फिर से उफान पर न आ जाए, इसलिए नदी के जलस्तर पर नज़र रखी जा रही है और मौसम विभाग की सूचनाओं को गंभीरता से लिया जा रहा है।
खीर गंगा नदी का इतिहास
खीर गंगा नदी का यह रौद्र रूप कोई नई बात नहीं है। इससे पहले 19वीं सदी की शुरुआत में इस नदी ने अपना रौद्र रूप दिखाया था जिसमें बहुत कुछ नष्ट हो गया था। उस समय धराली में लगभग 240 मंदिर थे, जो कत्यूर शैली में बने थे। ये मंदिर नदी के तेज़ बहाव में बह गए थे। इसके अलावा, 2013 और 2018 में भी खीर गंगा उफान पर आई थी और धराली समेत आसपास के इलाकों को काफी नुकसान पहुँचाया था। तब भी कई घर और दुकानें बह गई थीं। इस तरह खीर गंगा नदी का उफान कई बार इलाके के लिए खतरनाक साबित हुआ है।
खीर गंगा का नाम कैसे पड़ा -खीर गंगा नाम कथा
इस नदी के नाम को लेकर कई कहानियाँ प्रचलित हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि प्राचीन काल में यहाँ भगवान कार्तिकेय की एक गुफा थी, जहाँ से खीर बहती थी। कहा जाता है कि बाद में भगवान परशुराम ने इस खीर को पानी में बदल दिया ताकि कलियुग में लोग आपस में लड़ाई-झगड़ा न करें। इसके अलावा, एक मान्यता यह भी है कि इस नदी का पानी दूध जैसा सफेद है, इसलिए इसे 'खीर गंगा' कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस जल में स्नान करने से कई रोगों से मुक्ति मिलती है। खीर गंगा नदी, गंगा नदी की सहायक नदी भागीरथी से मिलकर उसकी धारा को और तेज़ बनाती है।
धराली में खीर गंगा का प्रभाव
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्र में नदियों का अचानक उफान और बादल फटना आम बात है, लेकिन खीर गंगा का रौद्र रूप कभी-कभी इसे अलग कर देता है। धराली जैसी जगहों पर इन प्राकृतिक घटनाओं का सीधा असर लोगों के जीवन पर पड़ता है। बाढ़ के दौरान जल स्तर तेज़ी से बढ़ता है और यह नदी किनारे रहने वाले लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। इसी वजह से प्रशासन और स्थानीय लोग हमेशा सतर्क रहते हैं, लेकिन फिर भी प्राकृतिक आपदाएँ कभी-कभी बहुत तेज़ी से आती हैं।

